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September 11, 2024
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गठबंधन की राह में रोड़ा बनेंगे अखिलेश!

By Shakti Prakash Shrivastva on September 25, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                               लोकसभा चुनाव में बीजेपी को केंद्र की सत्ता से हर हाल में उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ पिछले दिनों विपक्षी दलों का एक गठबंधन अस्तित्व में आया। इसका नाम तो लंबा है लेकिन शार्ट में उसे आईएनडीआईए और पुकारने में इंडिया नाम से पुकारा जा रहा है। गठन के बाद से अभी तक तीन बैठकें इस 26 दलीय गठबंधन के प्रतिनिधियों की हो चुकी है। अब लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए गठबंधन में आपसी दलों के बीच सीटों के बँटवारे पर मंथन शुरू हो गया है। उत्तर प्रदेश में गठबंधन के भविष्य को लेकर ख़ासी गंभीरता बरती जा रही है। क्योंकि यहाँ से सर्वाधिक अस्सी लोकसभा सीटें है। यहाँ गठबंधन के दो प्रमुख प्रतिभागी कांग्रेस और सपा है। इनके बीच बँटवारे को लेकर जो स्थिति दिख रही है उससे लगता है कि सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव इस गठबंधन की राह में रोड़ा बन सकते हैं। क्योंकि सूबे की मौजूदा सियासत में कांग्रेस की जो हालत है उस आधार पर जितनी सीटें अखिलेश कांग्रेस को देना चाहेंगे संभव है कि उतने पर कांग्रेस राजी न हो। ऐसे में यह भी संभव है कि सूबे में यह गठबंधन प्रभावहीन हो जाये।

पिछले दिनों सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का एक बयान भी आया था जिसमें उन्होने कहा था कि सपा गठबंधन से सीटें मांगेगी नहीं बल्कि सीटें देगी। वैसे भी इस बयान के अलावा यूपी कांग्रेस प्रमुख अजय राय ने भी पिछले दिनों यूपी के घोसी और उत्तराखण्ड के बागेश्वर सीटों को लेकर जो बयान दिया था उसके चलते दोनों दलों के बीच सियासी तल्खी साफ-साफ झलक रही है। हालांकि प्रदेश इकाई के इस बयान के बाद से अभी तक कांग्रेस आलाकमान की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। सियासी जानकारों की माने तो सपा सीट बँटवारे पर कांग्रेस के 2019 लोकसभा चुनाव परिणाम को मानक मानकर चल रही है। इस आधार पर सपा बमुश्किल 5 से 7 सीट ही कांग्रेस के हिस्से देने के मूड में है। क्योंकि इस चुनाव में कांग्रेस के पास महज एक रायबरेली लोकसभा सीट ही मिली थी। कांग्रेस युवराज राहुल गांधी तक चुनाव हार गए थे। जबकि कांग्रेस गठबंधन से 2009 के लोकसभा परिणाम के आधार पर सीटों की अपेक्षा कर रही है। जिसमें कांग्रेस को अपने बलबूते प्रदेश में 21 सीटें मिली थी। इस आधार पर कांग्रेस कम से कम 15 से 20 सीटें हासिल करने की इच्छुक है। दोनों दलों की अलग मंशा के चलते संभव है कि सूबे में गठबंधन की गांठ ढीली हो और कांग्रेस अकेले ही चुनाव मैदान में उतरे।

इसी एक वजह ये भी है कि कांग्रेस ने इस बार सूबे में चुनाव को लेकर एक अलग रणनीति बना रखी है। इसके तहत उसने पूरे प्रदेश को तीन हिस्सों में बाँट रखा है। पहली श्रेणी में 30 ऐसी सीटें हैं जिसपर पार्टी पूरी तैयारी और ताकत से उतरना चाहती है। इस पहली श्रेणी के अलावा पार्टी ने दूसरी श्रेणी में उन 30 सीटों को रखा है जहां पिछले चुनावों में उसे कमोबेश सम्मानजनक वोट मिले थे। इनके अलावा तीसरी श्रेणी में शेष सीटें है जिनसे पार्टी को कोई खास अपेक्षा भी नहीं है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय की मुताबिक पार्टी का पूरा फोकस एक और दो श्रेणी की सीटों पर ही रहेगा। उनका मानना है कि पार्टी गठबंधन की पक्षधर है लेकिन सम्मानजनक सीटें नहीं मिलने पर पार्टी के पास अकेले चुनाव में जाने का विकल्प भी है। पार्टी चुनावों में किसी के रहमोकरम की मोहताज नहीं हैं। हमारी पार्टी क्षेत्रीय नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय पार्टी है और यह चुनाव भी लोकसभा का है न कि विधानसभा का।  लेकिन सियासत के जानकारों का मत श्री राय की मतों से भिन्न है। उनका मानना हैं कि कांग्रेस अकेले लड़कर वोटों के बिखराव होने का आरोप अपने माथे नहीं लेना चाहती है। इस बाबत शुरू में हीकांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नीतीश कुमार से हुई बातचीत में स्पष्ट कर दिया था कि वह बीजेपी के खिलाफ हर सीट पर गतहबंधन का एक ही उम्मीदवार चाहते हैं। इसके लिए उनकी पार्टी बड़ा दिल दिखाने के लिए तैयार है। दोनों पार्टियों के हालिया रुख से ऐसा लगता है कि फिलहाल दोनों ही अपने पाले में अधिक से अधिक सीटें करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव के पहले होने वाले विधानसभा चुनावों के परिणाम काफी अहम होंगे। क्योंकि उम्मीद की मुताबिक कांग्रेस को यदि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में बेहतर परिणाम मिलते है तो उसकी दावेदारी सपा की तुलना में मजबूत हो जाएगी। यदि किन्ही कारणवश प्रदेश में सपा अपेक्षानुकूल सीटें देने पर राजी नहीं होती है तो कांग्रेस बीएसपी के साथ मैदान में उतरने का एक विकल्प लेकर भी चल रही है। हालांकि गठबंधन के भविष्य के लिए प्रदेश में सपा और कांग्रेस की सहमति बहुत अहम है। देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश यादव गठबंधन के भविष्य के लिए कितनी दरियादिली दिखाते है। या फिर रोड़ा साबित होते हैं।

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