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सिद्धार्थ विश्वविद्यालय : गरीब कोटे से नौकरी मामले में मंत्री के भाई ने दिया इस्तीफा, विवाद थामने की कोशिश

By Shakti Prakash Shrivastva on May 26, 2021
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लखनऊ, (मुख्य संवाददाता)। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में गरीब कोटे से असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी पाये प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई ने आज अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। व्यक्तिगत कारणों का हवाला देकर दिये गए इस्तीफे से तूल पकड़ चुके इस विवाद को थामने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। कुलपति प्रो सुरेन्द्र दुबे ने इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है।

गरीबी प्रमाणपत्र ने मामले को तूल दे दिया

प्रदेश के बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ सतीश द्विवेदी के भाई डॉ अरुण द्विवेदी की नियुक्ति असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में हुई थी। उन्होने 21 मई को ज्वाइन भी कर लिया। लेकिन उसी दिन से उनके गरीब (इडब्लूएस) कोटे से नियुक्ति पाने का मामला मीडिया मे आ गया। आरोप लगा कि भाई मंत्री, पत्नी डॉ विदुषी दीक्षित मोतीहारी कालेज में मनोविज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर और स्वयं वनस्थली विश्वविद्यालय मे मनोविज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नौकरी करने वाला आर्थिक तौर पर कमजोर होने का प्रमाणपत्र कैसे पा गया। बहरहाल मामला तूल पकड़ा आप पार्टी ने धरना-प्रदर्शन किया, कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी ने मुख्यमंत्री से आपदा में ढूँढने वाले मंत्री पर कार्रवाई की मांग की तो सामाजिक कार्यकत्री नूतन ठाकुर ने राज्यपाल से जांच की मांग की। राज्यपाल ने कुलपति से रिपोर्ट भी तलब की। हालांकि घटना क्रम मे कुलपति ने स्वीकारा कि यदि जांच में गलत मिला तो निरस्त होगी नियुक्ति जबकि भाई मंत्री ने चुनौती देते हुए मीडिया में कहा कि जिसे आपत्ति है वो जांच करवा सकता है। एक अभ्यर्थी ने आवेदन किया और विश्वविद्यालय ने पूरी प्रक्रिया के तहत चयन किया। इसमें मेरा कोई रोल नहीं है।

पत्नी की तनख्वाह लगभग 70 हजार

डॉ अरुण की पत्नी डॉ विदुषी की बहाली मोतीहारी के एम एस कालेज मे बीपीएससी के माध्यम से 2017 में हुई थी। वे वहाँ मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। कॉलेज के वित्त प्रभाग के सूत्रों के अुनसार सातवें वेतनमान के बाद उनका वेतन अन्य भत्ता के साथ 70 हजार से अधिक है। भले ही डॉ अरुण द्वारा इस्तीफा देकर मामले को थामने की कोशिश की गयी है लेकिन इस विवाद ने कई प्रश्न खड़े कर दिये है मसलन क्या इसी नियुक्ति के लिए ही कुलपति प्रो सुरेन्द्र दुबे का समाप्त हो चुका कार्यकाल बढ़ाया गया।

 

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