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एकादशी व्रत : गोरक्षपीठ की परंपरा के तहत CM योगी ने आँवला पेड़ के नीचे किया सहभोज

By Shakti Prakash Shrivastva on November 5, 2022
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पूर्वाञ्चलनामा न्यूज, गोरखपुर। गोरक्षपीठ में सहभोज संस्कृति का अलग महत्व है। योगी आदित्यनाथ के गुरु और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर रहे महंत अवैद्यनाथ जी का सहभोज के प्रति विशेष लगाव था। हिन्दू धर्म में व्याप्त उंच-नीच, छूआ-छूत जैसी कुरीतियों को समाप्त करने के लिए ही उन्होंने सहभोज को अपने कार्य-व्यवहार में मान्यता दी थी। इस क्रम में ही उन्होंने एक बार बनारस के संत-महात्माओं के साथ डोमराज के घर भोजन कर समाज को एकजुटता का संदेश दिया था। गुरु की इस परंपरा में मौजूदा गोरक्ष पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी अगाध श्रद्धा व विश्वास है। यही वजह है कि गुरु श्री के ब्रह्मलीन होने के बाद योगी जी भी स्थापित परंपरा का निर्वहन करते हुए प्रत्येक वर्ष हरि प्रबोधनी एकादशी व्रत के बाद पारण हेतु द्वादशी के दिन गोरखनाथ मंदिर में सहभोज का आयोजन करते हैं। इस वर्ष भी शनिवार को मंदिर परिसर में साधना भवन के सामने स्थित आंवला पेड़ के नीचे सहभोज का आयोजन किया गया। इसमें गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में कई अतिथियों ने सहभोज में शामिल हो अन्नप्रसाद ग्रहण किया। सहभोज में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ के अलावा महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के प्रो यू पी सिंह, कालीबाड़ी मंदिर के महंत रवींद्रदास, सांसद रवि किशन, विधायक महेंद्र पाल सिंह सहित कई गणमान्य शामिल हुए। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही ‘हरि प्रबोधिनी एकादशी’ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने वाले मनुष्य को हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञों के आयोजन के बराबर फल मिलता है। इस चराचर जगत में जो भी वस्तुएं अत्यंत दुर्लभ मानी गयी है उसे भी मांगने पर ‘हरिप्रबोधिनी’ एकादशी प्रदान करती है। धर्म कथाओं में उल्लेख मिलता है कि आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक के मध्य भगवान श्रीविष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। प्राणियों के पापों का नाश करके पुण्य वृद्धि और धर्म-कर्म में प्रवृति कराने वाले श्रीविष्णु कार्तिक शुक्ल पक्ष ‘प्रबोधिनी’एकादशी को निद्रा से जागते हैं। मान्यता है कि तभी से सभी शास्त्रों ने इस एकादशी को अमोघ पुण्य फलदाई माना। कार्य-व्यापार में उन्नति,सुखद दाम्पत्य जीवन,पुत्र-पौत्र एवं बान्धवों की अभिलाषा रखने वाले गृहस्थों और मोक्ष की इच्छा रखने वाले संन्यासियों के लिए भी यह एकादशी अक्षुण फलदाई मानी गयी है। इसी दिन से सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह,मुंडन,गृह प्रवेश,यज्ञोपवीत आदि आरम्भ हो जाते हैं।

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