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लखीमपुर किसान आंदोलन : यहाँ भी किसानों ने नहीं चढ़ने दिया राजनीतिक रंग

By Shakti Prakash Shrivastva on October 5, 2021
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा स्वरूप की स्थापना 17 अक्टूबर 1986 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सर्वमान्य किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने की थी। किसान अस्मिता और हितों की रक्षा के लिए बन रहे यूनियन का स्वरूप निर्धारण करते समय कई किसान नेताओं के सुझाव के बावजूद बाबा टिकैत ने संगठन को गैर राजनीतिक रखने का निर्णय लिया था। आज लगभग साढ़े तीन दशक का समय बीत चुका है। लेकिन संगठन के जागरूक किसान नेताओं ने राजनीति के अलमबरदारों को यूनियन की सीढ़ियाँ नही चढ़ने दिया। बीते रविवार को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में प्रदेश ही नहीं देश के कई राजनीतिक दलों ने किसानो की हमदर्दी जताते हुए आंदोलन में सेंध लगाने की कोशिश की। राज्य सरकार के खिलाफ अवसर की तलाश में भटक रहे विपक्ष को भी किसान आंदोलन के रूप में एक बेहतर अवसर मिला। लेकिन राज्य सरकार और किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे किसान नेता राकेश टिकैत की परिपक्वता ने विपक्ष सहित राजनीतिक दलों के किए-कराये पर पानी फेर दिया। हुआ ये कि जैसे ही घटना की खबर सुर्खियां बनी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह ने सबसे पहले दिल्ली से लखीमपुर के लिए कूच कर दिया। आधी रात में प्रियंका को सीतापुर में रोक उन्हे गेस्ट हाउस में रखा गया वही संजय सिंह को भी लखीमपुर नहीं पहुँचने दिया गया। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव, आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी, बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र, कांग्रेस के प्रमोद तिवारी, विधायक आराधना मिश्र ‘मोना’ सहित दर्जनों छोटे-बड़े नेताओं को सरकार ने लखीमपुर जाने से रोकते हुए उन्हे उनके घर में ही हाउस अरेस्ट रखा। देश में कृषि कानूनों के विवादितों बिलो को वापस किए जाने की मांग कर रहे पिछले दस महीने से किसान आंदोलित है। आंदोलन में अहम भूमिका रखने वाले और भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने अपनी सूझ-बूझ से एक बार फिर आंदोलन को राजनीतिक होने से बचा लिया। मामले को तूल देने पर आमादा राजनीतिक दल इसके पहले अपनी मंशा को जमीन पर उतार पाते राकेश ने सरकार के साथ मिल किसान हित में निर्णय करा कर मामले को ही रफा-दफा कर दिया। किसानो को कुचलने वाले प्रभावशाली मंत्री पुत्र समेत 14 लोगों के खिलाफ न केवल संगीन धाराओं में मुकदमा कराया बल्कि मृतक किसान परिवारों को एक-एक सरकारी नौकरी और 45 लाख रुपया मुआवजा दिलाने का आदेश भी करा दिया। ऐसा नहीं कि ये पहला मौका है जब किसानो के आंदोलन को राजनीतिक दलों ने हाईजैक करने की कोशिश की है। इसके पहले जब केंद्र सरकार के 3 नये कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर परेड निकाली थी तो उसमें भी कुछ शरारती तत्वों ने माहौल बिगाड़ने का प्रयास किया था। उसमें एक किसान की मौत हो गई। इस दौरान भी आंदोलन राजनीतिक रंग लेते-लेते बच गया था।

इसके बाद 28 अगस्त 2021 को हरियाणा के करनाल में सीएम मनोहर लाल खट्टर का विरोध कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज किया, तो किसान आंदोलन यूपी में भी उग्र हो गया था। इसे लेकर भी खूब राजनीति हुई, लेकिन किसान नेताओं की सूझ-बूझ ने आंदोलन को राजनीतिक रंग लेने से बचा लिया। इतना ही नहीं 5 सितंबर 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले मुजफ्फरनगर के जीआईसी मैदान में जो किसान महापंचायत हुई थी। उसमें भी किसी राजनीतिक दल के नेता को नहीं आने दिया गया था। महापंचायत से पहले ही संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐलान कर दिया था कि किसान अपने हक की लड़ाई खुद ही लड़ेंगे। कई और मौकों पर भी किसान नेता राजनीतिक लोगों से दूरी बनाते दिखे। इस तरह यह सुखद है कि लगभग 35 वर्षों की अपनी यात्रा में किसान यूनियन अपने संस्थापक बाबा महेंद्र सिंह द्वारा लिए गए संकल्पों को बनाए रखने की दिशा में सफल रहा है।

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