शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश की सियासत में राजा भैया के नाम से एक ही शख्स मशहूर है और वो है प्रतापगढ़ के कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह। आजादी के बाद से रियासती परिभाषा बदलने के बाद अधिकृत तौर पर न सही पुकार के रूप में ही उन्हें राजा भैया के ही रूप में जाना जाता है। कुंडा के भदरी रियासत से लखनऊ की सियासत तक अपनी अलग पहचान रखने वाले राजा भैया की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकेपहली बार 1993 में चुनाव लड़ने से लेकर 2022 में सातवीं बार चुनाव लड़ने तक लगातार वो अजेय रहे हैं। लगातार सातवीं बार विधायक बने है। छः बार तो राजा भैया निर्दलीय विधायक रहे लेकिन सातवीं बार उन्होने अपने द्वारा बनाए गए सियासी पार्टी जनसत्ता दल पर चुनाव लड़ विधायक बने। इनकी एक और खासियत है कि सूबे की सियासत में चाहें कितने भी उतार-चढ़ाव आए हों लेकिन इनके ऊपर उसका कोई प्रभाव नहीं रहा। लगभग हर सत्ता में ये मंत्री रहे। बीजेपी नेता कल्याण सिंह ने एकबार इन्हे कुंडा का गुंडा कहा था लेकिन जब उनकी सरकार बनी तो उसमें भी राजा मंत्री बने। लेकिन ऐसे अजेय रहे राजा भैया फिलहाल इन दिनों संकट में फँसते नजर आ रहे हैं।
2012 में कुंडा में हुए पुलिस क्षेत्राधिकारी जिया उल हक हत्याकांड का ठंडे बस्ते में जा चुका मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए हालिया निर्णय से फिर चर्चा में आ गया है। यह निर्णय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और उनके जनसत्ता दल के लिए संकट खड़ा कर सकता है। लोकसभा चुनाव का समय नजदीक होने की वजह से यह फैसला किसी बड़े दल के साथ गठबंधन करने के इनके प्रयास को प्रभावित कर सकता है। इस बार राजा भैया अपने जनसत्ता दल से तीन लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे है। हालांकि नवंबर 2018 में गठित हुए राजनीतिक पार्टी जनसत्ता दल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अपने उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन मोदी लहर के चलते उनका कोई भी उम्मीदवार कामयाब नहीं हो सका। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में उतरी जनसत्ता दल ने दो सीटें जीतने में कामयाबी जरूर हासिल की। सियासी गलियारों में माना जाता है कि जनसत्ता दल या उसके मुखिया राजा भैया का वोट बैंक प्रतापगढ़ और उसके आस-पास के जिलों में ठीक-ठाक है। यही वजह है कि राजा भैया प्रतापगढ़, कौशांबी सहित तीन लोकसभा सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारने की इस बार तैयारी कर रहे हैं। बीएसपी और सपा से रिश्ते बहुत अच्छे न होने के चलते माना जा रहा है कि उनकी पार्टी बीजेपी से एक या दो सीटें पाने की उम्मीद लगाए बैठी है। ऐसे प्रयासों के बीच अब अगर जिया उल हक हत्याकांड की जांच का मामला तूल पकड़ता है तो इससे राजा भैया की चुनावी तैयारियों पर प्रभाव पड़ना तय माना जा रहा है।
इस मामले के अलावा भी पिछले कुछ महीनों से राजा भैया लगातार किसी न किसी वजहों से सुर्खियों में बने हुए हैं। कभी अपनी पत्नी भानवी सिंह से तलाक को लेकर तो कभी पत्नी द्वारा लगाए गए अमर्यादित आरोपों को लेकर। ताजा चर्चा जिस मुद्दे को लेकर है वो मामला प्रतापगढ़ के कुंडा के बलीपुर गांव से जुड़ा हुआ है। यहाँ एक जमीन का विवाद था। सपा समर्थक बलीपुर के प्रधान नन्हे लाल यादव और गांव के ही कामता प्रसाद पाल के बीच एक जमीन के मालिकाना को लेकर विवाद था। कामता राजा भैया के करीबी गुड्डू सिंह के नजदीकी थे। 2 मार्च 2013 को जमीन के विवाद को सुलझाने के लिए बुलाई गई पंचायत में ही प्रधान नन्हे यादव की हत्या हो गई। घटना की जानकारी पाकर तत्कालीन सीओ कुंडा जिया-उल हक स्थानीय हथिगवां थाने के प्रभारी मनोज शुक्ला और कुंडा प्रभारी सर्वेश मिश्रा के साथ बली गांव पहुंचे। आक्रोशित गांव वालों ने पुलिस पर हमला बोल दिया, जिसमें सीओ की हत्या कर दी गई। इसमें नन्हे यादव के भाई सुरेश यादव की भी गोली लगने से मौत हो गई थी।
घटना को लेकर दो एफआईआर दर्ज हुईं। पहली निरीक्षक मनोज शुक्ला की तहरीर पर जिसमें प्रधान नन्हें यादव के भाइयों और बेटे समेत 10 लोग नामजद थे। दूसरी एफआईआर सीओ की पत्नी परवीन आजाद की ओर से दर्ज हुई, जिसमें राजा भैया, गुलशन यादव सहित चार लोग आरोपी थे। राजा भैया उस समय अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री थे। आरोप के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की संस्तुति पर 8 मार्च 2013 को सीबीआई ने इस हत्याकांड की जांच शुरू की। जुलाई 2013 में ही सीबीआई ने राजा भैया को इस केस में क्लीनचिट दे दी। जबकि लोअर कोर्ट ने इस मामले में कुछ निर्देश दिए।हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद करते हुए सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट मान लिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ मरहूम सीओ जिया-उल हक की पत्नी परवीन आजाद सुप्रीम कोर्ट पहुंची जिस पर कोर्ट ने दुबारा केस की जांच करने का निर्देश दिया है। जांच में यदि कहीं राजा भैया के ऊपर कोई आंच आई तो फिर राजा भैया समेत उनके जनसत्ता दल पर संकट का बढ़ना तय है।