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मैनपुरी उपचुनाव : मुलायम सिंह की यादों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की तैयारी में सपा!

By Shakti Prakash Shrivastva on November 7, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव की दुदुंभी बज चुकी है। इस लोकसभा सीट पर लगभग ढाई दशकों से समाजवादी पार्टी खासकर मुलायम सिंह का कब्जा रहा है। यही वजह है कि यहाँ बीजेपी जहां अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाकर चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश कर रही है वहीं सपा अपने परंपरागत प्रभाव और मुलायम सिंह की यादों के सहारे वैतरणी पार करने की जुगत में है।

गोला गोकरणनाथ में हुए हालिया विधानसभा उपचुनाव में मिली जीत से उत्साहित बीजेपी योगी सरकार के कामकाज के आधार पर यहाँ के उपचुनाव में भी अपने विजय के प्रति काफी हद तक आश्वस्त है। जबकि हाल ही में हुए मुलायम सिंह यादव यानि नेताजी के निधन से उपजी सहानुभूति के सहारे सपा अपनी जीत को लेकर आशान्वित लग रही है। सपाइयों को इस बात का भरोसा है कि समाजवादी पार्टी 1992 में अपने अस्तित्व में आने से लेकर आज तक हुए यहाँ के सभी चुनाव में विजयी रही है। पूरे क्षेत्र में सपा का प्रभाव है। यहाँ तक कि 2014 में जब मोदी लहर थी तब भी प्रदेश की यह सीट सपा के ही कब्जे में रही थी। ऐसे में मुलायम सिंह के न रहने पर उनसे जुड़ी सहानुभूति और उनकी यादें मतदाताओं को सपा के साथ रख कर जीत दिलाने में सहायक सिद्ध हो सकती है।
उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और एक बार केंद्र में रक्षामंत्री रहे सपा के संस्थापक नेताजी मुलायम सिंह यादव का पिछले 10 अक्टूबर को निधन हो गया था। वह मैनपुरी लोकसभा सीट से ही सांसद थे। उनके निधन के बाद रिक्त हुए इस सीट पर पांच दिसंबर को मतदान होना है। नेताजी ने 1992 मे सपा के गठन के बाद 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में पहली बार यहाँ से चुनाव लड़ा था। विजयी भी हुए थे और बाद में हुए सभी नौ चुनावों में भी यहाँ सपा का ही कब्जा रहा। इसलिए इसे सपा के गढ़ के रूप में जाना जाता है।

सात बार सांसद चुने गए नेताजी पाँच बार मैनपुरी से ही जीते थे। मैनपुरी से पहली बार 1996 में, दूसरी बार 2004 में, तीसरी बार 2009 में, चौथी बार 2014 और पाँचवी बार 2019 में जीते थे। 1998 और 1999 में यहाँ से बलराम यादव, 2004 उपचुनाव में धर्मेन्द्र यादव और 2014 उपचुनाव में तेज प्रताप यादव विजयी हुए थे। विपक्षियों ने हर चुनाव में इस गढ़ को भेदने की कोशिश की लेकिन उन्हे कभी सफलता नहीं मिली। इस बार बीजेपी समेत समूचा विपक्ष अपने-अपने तैयारियों के साथ गढ़ जीतने उतरेगा। देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव में जीत पार्टियों की उपलब्धियों और तैयारियों की होती है या नेताजी के कर्मभूमि पर बगैर नेताजी के उनके सहानुभूति और विरासत की यादों की वजह से सपा की होती है।

 

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