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June 16, 2025
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यूँ ही नहीं अमेठी से रायबरेली गए राहुल!

By Shakti Prakash Shrivastva on May 8, 2024
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

एकबारगी ऐसा लगता है कि आखिर इतने वर्षों से एक क्षेत्र को अपनाए रखने के बाद अचानक सिर्फ एक चुनाव हार जाने से छोड देना कहाँ तक जायज है। बात राहुल गांधी की हो रही है जो पिछले कई चुनाव अमेठी से लड़े लेकिन पिछला चुनाव हारने के बाद इस बार उन्होंने अमेठी की बजाय रायबरेली से लड़ना स्वीकारा। बेशक ये निर्णय विपक्षियों को खासकर बीजेपी को एक बढ़िया मुद्दे के तौर पर मिल गया है लेकिन यह भी सच्चाई है कि राहुल गांधी ने यह अप्रत्याशित निर्णय कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इस निर्णय के पीछे राहुल ही नहीं कांग्रेस पार्टी की भी एक सोची समझी रणनीति है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का संगठन आज बेहद कमजोर है। पूरे प्रदेश में मात्र दो विढायक पार्टी के हैं। इसके अलावा राहुल गांधी चुनाव हारने के बाद क्षेत्र में गए ही नहीं। ये दो ऐसे कारण थे जिनका निदान कांग्रेस के पास नहीं था। ऐसे में कुछ न की स्थिति में एक बीच का रास्ता निकलते हुए यह निर्णय लिया गया। इस निर्णय पर आज चाय-पान की दुकानों से लेकर सोशल मीडिया तक में चर्चा हो रही है। कि आखिर ऐसा क्यों। इसके नफा-नुकसान का आकलन हो रहा है।

जबकि सच्चाई है कि यदि गांधी नेहरू परिवार की सियासत पर निगाह डालें तो यह निर्णय बहुत अप्रत्याशित नहीं लगता। रायबरेली और अमेठी में गांधी नेहरू परिवार की पकड़ के लिहाज से देखें तो रायबरेली का पलड़ा हमेशा भारी रहा। पिछले चुनावों के नतीजों से लेकर जीत की लीड तक के आंकड़े इसे तस्दीक करते हैं। जाहिर तौर पर अमेठी की तुलना में रायबरेली गांधी परिवार के लिए कहीं अधिक सुरक्षित व मुफीद है।

पिछले दिनों सोनिया गांधी के राज्यसभा में जाने के बाद जारी किए गए उनके भावुक पत्र के बाद ही यह बड़ा सवाल खड़ा हुआ था कि रायबरेली में उनकी विरासत कौन संभालेगा। बेटा राहुल गांधी या फिर बिटिया प्रियंका गांधी। विरासत के सवाल का महज चार दशक का ही मंथन करें तो तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाती है। 1980 में संजय गांधी की मौत के बाद जब बेटे राजीव गांधी और बहू मेनका गांधी में किसी एक के चयन की बात आई तो इंदिरा गांधी ने भी बेटे को तवज्जो दी थी। 1984 में मेनका गांधी बगावती तेवर अख्तियार कर राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में उतरीं तो शिकस्त का मुंह देखना पड़ा।

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद 1999 में सोनिया गांधी राजनीति में लौटीं तो अमेठी में पति की विरासत को संभाला। 2004 में जब उन्होंने अपना क्षेत्र बदलकर रायबरेली किया तो अमेठी सीट राहुल गांधी को ही सौंपी। यह वह दौर था जब सोनिया से लेकर कमोवेश पूरी कांग्रेस राहुल के पीछे खड़ी थी। राहुल ने पार्टी की कमान तक संभाली। लेकिन अब हालात पूरी तरह बदले हुए है। कमजोर संगठन के साथ बीजेपी जैसी मजबूत हो चुकी पार्टी को टक्कर देना बहुत आसान नहीं है। ऐसे में काँग्रेस का यह निर्णय समझदारी भरा साबित हो सकता है।

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