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पूरे प्रदेश में जो भी हो लेकिन गोरखपुर में CM की प्रतिष्ठा दांव पर!

By Shakti Prakash Shrivastva on May 2, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश में हो रहे स्थानीय निकाय चुनाव में मंगलवार को पहले चरण के मतदान वाले इलाके में प्रचार बंद हो गया। इसी चरण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर का भी चुनाव है। लिहाजा यहाँ भी बंद हो गया। बंद होने के चौबीस घंटे पहले मुख्यमंत्री ने शहर के हृदयस्थली गोलघर क्षेत्र में एक विशाल जनसभा की। इसके चंद रोज पहले राप्तीनगर इलाके में मुख्यमंत्री ने एक बडी जनसभा की थी। लंबी-चौड़ी कार्यकर्ताओं और नेताओं की फौज के बावजूद मुख्यमंत्री का इतना इलाके में फोकस रखने के पीछे कुछ अहम वजहें है। योगी आदित्यनाथ ने जिस इलाके का लगभग डेढ़ दशकों तक बतौर सांसद प्रतिनिधित्व किया और उसके बाद लगभग छः साल से अधिक समय से बतौर मुख्यमंत्री विशिष्ट इलाका होने के प्रभामंडल को बढ़ा रहे है। ऐसे में यहाँ का हर चुनाव चाहे लोकसभा, विधानसभा, विधान परिषद, जिला पंचायत या महापौर सहित और भी छोटे-बड़े चुनावों सीधे इनकी प्रतिष्ठा का चुनाव हो जाते है।

इसकी एक मजबूत वजह ये भी है कि जब प्रदेश या देश में इनकी सरकारे यानि बीजेपी की नहीं रही तब भी इस इलाके का प्रतिनिधित्व इन्होने अपनी छवि की बदौलत बनाए रखा। आज तो केंद्र और राज्य दोनों में ही इनकी अपनी यानि बीजेपी की सरकारें हैं। ऐसे में इनके ऊपर दबाव या इनकी प्रतिष्ठा मेयर का चुनाव जीतने का नहीं है बल्कि नगरनिगम सदन में जहां बहुमत नहीं मिलता रहा है वहाँ बहुमत हासिल करने का है। जहां तक मेयर का प्रश्न है तो अभी तक पूर्व में गोरखपुर के मेयर उम्मीदवार रहे अधिकांश प्रत्याशी पूरी तरह योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा के भरोसे चुनावी वैतरणी पार करते रहे। यह पहला मौका है जब बीजेपी ने शहर के एक सर्व प्रतिष्ठित चिकित्सक यानि डॉ मंगलेश श्रीवास्तव को अपना प्रत्याशी बनाया है। डॉ मंगलेश संघ की पृष्ठभूमि वाले होने के बावजूद शहर में अधिक आबादी वाले कायस्थ बिरादरी से होने के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों में बढ़-चढ़कर हिसा लेने वालों में शुमार है।

पिछले दिनों ये इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के लोकल यूनिट के अध्यक्ष भी रहे। संस्कार भारती के क्षेत्रीय मंत्री भी है। इस तरह इस बार योगी आदित्यनाथ के प्रभाव के साथ-साथ मंगलेश का अपना औरा भी मतदाताओं के सामने है। लिहाजा चुनाव जीतने में संशय इस बात की है कि योगी की प्रतिष्ठा के अनुसार विरोधी से अधिक अंतर से विजय मिले साथ ही साथ नगर निगम सदन में बहुमत हासिल हो। ऐसे में योगी के पूरे प्रदेश और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार के साथ यहाँ की प्रतिष्ठा को प्रमाणित करनी है। जो एक बड़ी चुनौती है। हालांकि अतीत के रिकार्ड यह संभावना जताने के लिए काफी है कि योगी अपनी यह प्रतिष्ठा एक बार फिर बचाने में कामयाब होंगे।

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