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April 28, 2024
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अपनी ही छोड़ी सीट पर जीतेंगे दारा या..

By Shakti Prakash Shrivastva on August 27, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                       साल भर पहले हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में दारा सिंह चौहान बीजेपी प्रत्याशी को हराकर घोसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे। चुनाव को बीते अभी साल भर भी नहीं हुआ कि पहले बीजेपी छोड़कर सपा पहुंचे दारा सिंह फिर सपा छोड़ वापस बीजेपी में शामिल हो गए। अब उनके इस्तीफे से रिक्त हुई घोसी सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है। 5 सितंबर को मतदान होना है। बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को अपना प्रत्याशी बनाया है जबकि सपा ने सुधाकर सिंह को उतारा है। बीएसपी और कांग्रेस ने इस चुनाव में रुचि नहीं दिखाते हुए अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। ऐसे में यहाँ मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा में ही है। राष्ट्रीय स्तर पर बने गठबंधन की बात करें तो एनडीए का प्रतिनिधित्व यहाँ बीजेपी कर रही है जबकि इंडिया गठबंधन की तरफ से फ्रंट सपा ने खोल रखा है। ऐसे में अब देखना है कि यहाँ से मतदाताओं के वोट का ऊंट किस करवट बैठता है। जीत बीजेपी की होती है या फिर सपा की। सियासी जानकार इस उपचुनाव में हो रहे सियासी मुकाबले को लोकसभा चुनाव की झलक के रूप में मान रहे हैं।

अतीत के करीबी रहे मुकाबलों को देखते हुए बीजेपी को भरोसा है कि उनके प्रत्याशी दारा सिंह चौहान इस बार अपने ओबीसी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में कामयाब होंगे। इलाकाई जातीय समीकरण भी इस बात की चुगली कर रहे हैं कि यदि ऐसा करने में दारा सफल रहते है तो निःसंदेह चुनाव परिणाम उनके पक्ष में आ सकता है। क्योंकि घोसी विधानसभा क्षेत्र में 60 हजार के लगभग राजभर, 50 हजार के लगभग चौहान यानि नोनिया-ओबीसी और 40 हजार के लगभग यादव मतदाता हैं। इसके अलावा 60 हजार के लगभग दलित और 90 हजार के करीब मुस्लिम मतदाता हैं। चूंकि चुनाव में बीएसपी प्रत्याशी नहीं है और कांग्रेस का प्रत्याशी भी नहीं है हालांकि उसका कोई वजूद भी नहीं है लिहाजा ऐसा माना जा रहा है कि यहाँ का मुस्लिम मतदाता सपा के पक्ष में वोट करेगा। सियासत के जानकार इन समीकरणों के आधार पर ऐसा मान रहे है कि यहाँ का चुनाव परिणाम दलित मतदाता ही तय करेंगे। बीजेपी प्रत्याशी दारा के लिए यहाँ पार्टी के अंदर भी राजनीति हो रही है। पिछले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी छोड़कर सपा में जाने वाले और फिर वापस चुनाव लड़ने बीजेपी में आने वाले दारा सिंह को पार्टी का एक बड़ा तबका पसंद नहीं कर रहा है। जमीन पर रह कई सालों से काम कर रहे कार्यकर्ताओं की अवहेलना कर अविश्वसनीय दारा सिंह पर पार्टी द्वारा विश्वास करने को भी लेकर कार्यकर्ताओं में असंतोष है। हालांकि पार्टी ने दर्जन भर सरकार के मंत्रियों की ताकत घोसी प्रचार में झोंक दी है। सरकार के समर्थन में दुबारा आने वाले सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर को भी क्षेत्र में अपने मतदाताओं को एकजुट करने की जिम्मेदारी दी गई है।

इस तरह से बीजेपी जहां अपने सरकार की उपलब्धियों को आम मतदाताओं तक पहुंचाते हुए जीत का सपना सँजोये हुए है वही सपा उम्मीदवार सुधाकर के पक्ष में सपा के स्टार प्रचारकों समेत सहयोगी रालोद जैसे पार्टियों के नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। समय के साथ-साथ सोशल मीडिया के उभार ने ग्रामीण मतदाताओं में काफी हद तक जागरूकता ला दी है। गली-नुक्कड़ों पर उनमें भी यह बहस हो रही है कि दारा सिंह जैसे नेता अपने निहित स्वार्थ के चलते ताश के पत्ते की तरह इधर-उधर पार्टी बदल देते है और समय के अलावा पैसे की बर्बादी भी कराते हैं। साल भर पहले बीजेपी में रहते हुए दारा पहले इस उम्मीद में सपा में गए कि उन्हे यकीन था कि इस बार सपा की सरकार बनने वाली है। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो फिर वापस बीजेपी में आ गए। उन्हे इस बात की तनिक भी परवाह नहीं कि उनके एक निर्णय ने सरकार का करोड़ों रुपया बर्बाद किया और सरकारी मशीनरी की बेवजह प्राथमिकता बदलने को मजबूर कर दिया। यदि युवाओं की यह सोच अधिकांश मतदाताओं तक अपनी पैठ बना लेगी तो संभव है इस बार दारा का सपना चकनाचूर हो जाए।

 

 

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