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April 28, 2024
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400 पार की सरकार !

By Shakti Prakash Shrivastva on February 11, 2024
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

देश में लोकसभा का चुनाव नजदीक आ रहा है। ऐसे में बीजेपी और उसके एनडीए गठबंधन दल के नेता लगातार कह रहे है कि  इस बार मोदी सरकार 400 के पार। मतलब इस बार चुनाव में तीसरी बार एनडीए गठबंधन की सरकार 400 से अधिक सांसदों की संख्या के साथ बनेगी। इस आशय के भाव और जिस आत्मविश्वास के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के मौजूदा सत्र में इस बार अगले पाँच साल के एजेंडे को रखा। वैसा करने से अमूमन प्रधानमंत्री कतराते हैं। इसे जुमला कहें या विरोधियों को पस्त करने की सियासी रणनीति या फिर अपने विचारधारा वाले दलों को नजदीक लाने की एक सोची-समझी चाल।

इसको समझने के लिए राजीव गांधी का समय याद किया जा सकता है जब 1984 में कांग्रेस को 400 से अधिक सीटें मिली थी। यदि कांग्रेस को मिल सकती है तो इतनी सीटें फिर बीजेपी क्यों नहीं पा सकती। हालांकि इसमें दो मुख्य अंतर हैं। एक तो 1984 का चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या पर उमड़ी सहानुभूति और गुस्से का इजहार था। साथ ही उस समय कांग्रेस पार्टी की पहुँच जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गुजरात से लेकर असम तक था। जबकि बीजेपी के साथ ऐसा नहीं है। मौजूदा लोकसभा की 543 सीटों में से लगभग 150 सीटें ऐसी हैं जिस पर बीजेपी कभी जीती ही नही हैं। ऐसे में अगर बीजेपी को 400 पर वाली सरकार बनानी है तो उसे खुद के सांसदों की संख्या 370 से अधिक करनी होगी।

सियासी जानकारों की मुताबिक 5 फीसद वोटों की बढ़ोत्तरी कर बीजेपी अधिकतम 343 सीटें पा सकती है। बीजेपी को 2014 में 31 फीसदी वोट के साथ 282 सीटें मिली थीं। 2019 में 6 फीसद वोट बढ़े तो उसकी सीटें बढ़ गयी 21। ऐसे में अगर बीजेपी को अकेले 370 की संख्या पार करनी है तो उसे अपने वोटों में कम से कम 8 से 10 फीसद बढ़ोत्तरी करनी होगी। इसके लिए उसे उन सीटों पर जीत दर्ज करनी होगी जहां पांच फीसदी से भी कम वोट मिले हैं। आंध्र प्रदेश की 25 और तमिलनाडु की 39 सीटें ऐसी हैं। केरल में हालांकि बीजेपी को दहाई संख्या में वोट मिले पर उसका खाता भी नहीं खुल सका था। इस तरह बीजेपी यदि हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पिछले प्रदर्शन को दोहराने में कामयाब हो तो 303 सीटें पा सकती है। साथ ही यदि उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में सीटें बढ़ा ले तो उसका आंकड़ा सवा तीन सौ तक पहुंच सकता है। ऐसे में ये तो तय लग रहा है कि अपना लक्ष्य साधने के लिए उसे पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अपनी सीटें बढानी होंगी साथ ही महाराष्ट्र और बिहार में अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना होगा। पिछली बार बीजेपी 224 सीटें दो लाख के ज्यादा के अंतर और 77 सीटें एक लाख या उससे कम के अंतर से जीती थी।
सियासी जानकारों की मुताबिक अपने इस प्रयास के साथ-साथ बीजेपी को रणनीति के तहत विपक्षी गठबंधन में भी पुख्ता सेंध लगाने की कोशिश करनी होगी जिससे उनकी आपसी एकजुटता कमजोर हो। हालांकि इस बार राम मंदिर, राष्ट्रवाद, करोड़ों की संख्या में लाभार्थी, मोदी की छवि जैसे अनेकानेक मुद्दे बीजेपी के लक्ष्य प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। इसके अलावा विपक्षी दल भी अपनी कारगुजारियों से बीजेपी की राह आसान कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी का कांग्रेस को 40 सीटों पर सिमटने की बात करना, स्टालिन द्वारा तमिलनाडु की 39 सीटों के लिए सनातन पर संकट खड़ा कर उत्तर भारत की सैकड़ों सीटों को संकट में डाल देंने जैसी बात, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप नेता अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का दिल्ली, पंजाब की 20 सीटों को नाक का सवाल बनाने पर आमादा हो जाना, ये सब बीजेपी की रणनीति में सहायक सिद्ध हों सकते है। इसके अलावा अपने लक्ष्य को साधने के लिए बीजेपी जब एक मेयर तक के चुनाव को प्रतिष्ठा से जोड़ सियासत सकती है तो इस बार चुनाव के लिए उसके गंभीरता का अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है।

 

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