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गरीबी का दंश : इंसानियत भी रूठी, पैसे के अभाव में रात भर बैठी रही पिता के शव के पास बेटी

By Shakti Prakash Shrivastva on July 27, 2021
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वाराणसी, (संवाददाता)। कोरोना महामारी ने कई ऐसे उदाहरण समाज के सामने रखे जिससे एहसास हुआ कि भौतिकवादी चकाचौंध वाली दुनिया में अभी भी इंसानियत जिंदा है। लेकिन इसी दौरान कुछ ऐसे भी वाकये हुए जिसने इंसानियत को झकझोरने का भी काम किया। ऐसा ही एक वाकया हुआ बीते दिवस वाराणसी में। जहां घर-घर झाड़ू-पोछा करने वाली पाण्डेयपुर निवासी प्रेमलता को पैसे के अभाव में हुई पिता के मौत के बाद अंतिम क्रिया के लिए पैसे न होने और अपनों के मुंह मोड़ लेने की वजह से पिता के शव के साथ रोते-बिलखते रात गुजारनी पड़ी। सुबह अमन कबीर जैसे एक युवा समाजसेवी के सहयोग से बेटी ने पिता का अंतिम संस्कार कराया।

पाण्डेयपुर की रहने वाली प्रेमलता मुहल्ले में झाड़ू-पोंछा का काम करके अपने और अपने पिता का जीवन भरण करती थी। रोज की तरह रविवार को जब प्रेमलता काम से वापस घर आई तो पिता राजकुमार गुप्ता की अचानक तबीयत बिगड़ गयी। तत्काल पास में जरूरत भर के पैसे नहीं होने पर अभी वो उसका इंतजामात कर ही रही थी कि अचानक पिता का देहांत हो गया। दर्द से कराहते-कराहते पिता की अचानक मौत से विचलित प्रेमलता के सामने दूसरी परेशानी खड़ी हो गयी कि अब अंतिम संस्कार के लिए क्या करे। क्योंकि उसके लिए भी पैसे नहीं थे। अपनों या आस-पड़ोस के किसी से मदद मिलने की उम्मीद थी  तो वो भी नहीं मिली। इंसानियत के इस मिले सबक से बिलखते हुए प्रेमलता रात भर अपने पिता के शव के साथ पड़ी रही। सुबह यह खबर जब युवा समाजसेवी अमन कबीर को लगी तो उनकी टीम ने न केवल प्रेमलता को तत्काल सहारा दिया बल्कि मर्णिकर्णिका घाट पर उसके पिता का अंतिम संकार भी कराया। समाज के इस चेहरे को देख समाजसेवी अमन कबीर का कहना था कि कोरोना ने काफी हद तक इंसानियत की सीख दी, इसका महत्व बताया लेकिन ऐसा लगता है कि अभी भी हम उससे सबक नहीं ले सके हैं। उन्होने बताया कि प्रेमलता के लिए कई लोगों ने मेरी आर्थिक मदद की। मेरे सहयोगियों ने शवयात्रा निकाली। प्रेमलता ने अपने पिता को न केवल कंधा दिया बल्कि अंतिम संस्कार में मुखाग्नि भी दी। अमन कबीर इलाके के एक ऐसे समाजसेवी है जो अपनी बाइक एंबूलेंस से सड़क के अशक्त, बेसहारा और कमजोर लोगों, बुजुर्गो आदि को अस्पताल पहुंचाने का काम करते है। यही वजह है कि इलाकाई उन्हे काशी का कबीर कहते हैं।

 

 

 

 

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