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यूपी चुनाव मेँ कोरोना इफेक्ट : रैलियों पर लगा प्रतिबंध तो सोशल मीडिया के सहारे होंगी प्रमुख पार्टियां

By Shakti Prakash Shrivastva on January 5, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                   जिस रफ्तार से देश मेँ कोरोना संक्रमण अपना दायरा बढ़ा रहा है उससे विधानसभा चुनाव वाले राज्यों की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सकते मेँ है।  कारण ये कि अधिकांश पार्टियों को इस बात का अंदेशा है कि चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश मेँ चुनाव की तिथियों की घोषणा के साथ ही सभी दलों की बड़ी चुनावी रैलियों पर प्रतिबन्ध लगा सकता है। हालांकि अभी चुनाव की तिथियों की घोषणा नहीं हुई है लेकिन राज्य में पिछले 48 घंटो मेँ कोरोना मरीजों की संख्या मेँ जिस दोगुनी रफ्तार से बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी है उसको देखते हुए बीजेपी और कांग्रेस जैसे बड़े दलों ने अपनी प्रस्तावित बड़ी रैलियों को फिलहाल निरस्त कर दिया है। कोरोना की तीसरी लहर के रूप मेँ ओमिक्रॉन के खतरे को देखते हुए कांग्रेस ने अपने लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ मैराथन रैली के सात-आठ कार्यक्रमों को रद्द कर दिया है और बीजेपी ने भी अपने कई कार्यक्रम निरस्त कर दिये है। ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना संक्रमण की वजह से संभव है कि चुनाव आयोग चुनावी रैलियों पर रोक लगा रैलियों के सोशल मीडिया के सहारे प्रोत्साहित करने को कहे। यदि ऐसा होता है तो उत्तर प्रदेश मेँ विधानसभा चुनाव की लड़ाई सोशल मीडिया पर लड़ी जाएगी। ऐसी स्थिति में उसी दल को बढ़त मिल सकती है, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सबसे बेहतर उपयोग कर पाएगा। यह स्थिति कुछ राजनीतिक दलों के लिए फायदेमंद तो कुछ के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार 15.02 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इसमें 18 से 30 वर्ष की आयु के 3.89 करोड़ मतदाता भी शामिल हैं, जिनका बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ माना जाता है। यह वर्ग जिस राजनीतिक दल की पकड़ में आएगा, चुनाव परिणाम के उसके पक्ष में मुड़ने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि, इसके बाद भी उत्तर प्रदेश की सामाजिक-शैक्षिक स्थिति अभी भी ऐसी है कि यहां के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग सोशल मीडिया जैसे माध्यमों से दूर है। विशेषकर ग्रामीण इलाकों के मतदाता अभी भी जातीय-सामाजिक समीकरणों से ज्यादा प्रभावित होते हैं। इन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए राजनीतिक दलों को छोटी-छोटी जनसभाओं, नुक्कड़ सभाओं का सहारा लेना पड़ सकता है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता पंकज श्रीवास्तव की मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा डिजिटलाइजेशन को महत्त्व देते रहे हैं। वे पार्टी कार्यकर्ताओं को भी सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने का संदेश देते रहते हैं। यही कारण है कि पार्टी की सोशल मीडिया पर पकड़ अच्छी बनी हुई है। यदि बड़ी रैलियों पर प्रतिबंध लगा भी तो सोशल मीडिया, ऑडियो-वीडियो संदेश और लाइव स्ट्रीमिंग के जरिए लोगों के साथ पार्टी और कार्यकर्ता जुड़ेगा। पार्टी ऐसी  स्थिति में भी बखूबी चुनाव लड़ेगी।  उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह की मुताबिक यदि चुनाव आयोग बड़ी रैलियों पर प्रतिबंध लगाने जैसा कोई कदम उठाता है, तो पार्टी के शीर्ष नेताओं की राय के आधार पर चुनावी अभियान आगे बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लगातार पार्टी को सोशल मीडिया पर मजबूत करते आ रहे हैं। कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया टीम बेहद शानदार तरीके से काम कर रही है। यूपी में हर जिले के हर ब्लॉक स्तर तक सोशल मीडिया की टीम खड़ी की जा चुकी है और वे इसी टीम के दम पर अपना चुनाव प्रचार आगे बढ़ाएंगे। समाजवादी पार्टी की मुताबिक उत्तर प्रदेश के चुनाव में सोशल मीडिया बहुत बड़ा रोल नहीं निभाएगा। गांव-देहात का असली मतदाता अभी भी इन प्लेटफॉर्म से बहुत दूर है। उसे महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं और वह उन्हीं से प्रभावित होकर मतदान करेगा। बावजूद पार्टी सोशल मीडिया सहित हर मोर्चे पर मजबूती के साथ डटी हुई है। राज्य की चौथी महत्वपूर्ण पार्टी बीएसपी का मानना है कि मुख्यधारा की मीडिया से ज्यादा सोशल मीडिया पर भरोसा करते हैं, जो ‘उनकी बात’ ‘उनके लोगों’ तक बिना किसी लाग-लपेट के पहुंचा रहे हैं। बड़ी रैलियों पर प्रतिबंध लगने के बाद भी उनकी चुनावी तैयारियों पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा।

 

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