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UP सियासत : बगैर एसपी-बीएसपी प्रदेश में बन सकता है तीसरा मोर्चा!

By Shakti Prakash Shrivastva on September 19, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

लोकतान्त्रिक व्यवस्था में पक्ष और विपक्ष दोनों का ही अहम स्थान होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश के मौजूदा सियासी तस्वीर को देखने से ऐसा लगता है कि प्रदेश में फिलहाल मजबूत दिखने वाला विपक्ष आने वाले दिनों में कमजोर हो सकता है। क्योंकि प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के खिलाफ मजबूत विपक्ष के रूप में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) है। लेकिन ऐसा लगता है कि अब प्रदेश में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और पूर्व में कई बार सरकार बनाने में कामयाब रहने वाली बीएसपी के बगैर भी एक तीसरा मोर्चा (Third Front) भी आकार ले सकता है। इस बाबत छोटे दल ही सही उन्होंने गठन की कवायद तेज कर दी है। इस संभावित तीसरे मोर्चे (Third Front) में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और बहन मायावती की बहुजन समाज पार्टी से दूरी रखने वाले पार्टियों के शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है।

प्रसपा (प्रगतिशील समाजवादी पार्टी) सुप्रीमो शिवपाल यादव के सपा से विधायक बनने के बाद जब सपा सुप्रीमो और भतीजे अखिलेश यादव से रिश्ते खराब होने शुरू हुए तभी से इस बात के कयास लगाए जाने लगे कि शिवपाल अब अपनी पार्टी को मजबूती देंगे। चूंकि शिवपाल ने खुलेआम यह घोषणा कर दी थी कि अब वे अखिलेश के साथ हरगिज नही जाएंगे। इसी के बाद से एक तीसरे मोर्चे (Third Front) के गठन की बात होने लगी। 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश की सपा से गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाले सुभासपा (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) सुप्रीमो ओम प्रकाश राजभर की राहें भी फिलवक्त सपा (Samajwadi Party) से जुदा हैं। उनके पार्टी के अंदरखाने भी हालात बहुत सामान्य नही है। कुछ ही हफ्तों में छोटे-बड़े कुल सैकड़ों कार्यकर्ताओं-पदाधिकारियों ने पार्टी छोड़ दी है। इस भगदड़ के पीछे अखिलेश का हाथ मानने वाले राजभर जल्द ही अखिलेश को सबक सिखाने का भी ऐलान कर चुके हैं।

राजभर के अलावा दलित युवाओं के मसीहा बनकर राजनीति में उभरे भीम आर्मी सुप्रीमो चंद्रशेखर आजाद भी मोर्चे का हिस्सा हो सकते हैं। चंद्रशेखर भी विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश पर धोखा देने का आरोप लगा चुके हैं। मायावती को दलितों का विरोधी बताने वाले चंद्रशेखर और राजभर के रिश्ते आपस में काफी अच्छे है।

राजनीतिक गठबंधन या मोर्चे अमूमन चुनावों के दौरान ही बनते है। ऐसे में जबकि आगामी लोकसभा चुनाव में अभी लगभग दो साल का वक्त है। हालात देखकर ऐसा लगता है कि शिवपाल यादव की प्रसपा, चंद्रशेखर आजाद की भीम आर्मी और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा के साथ-साथ कुछ छोटे और नए दल भी आपस में गठबंधन कर चुनावी महासमर में उतर सकते हैं। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि भले ही इस मोर्चे (Third Front) में शामिल दलों का कोई व्यापक जनाधार नही है लेकिन इनके जातीय और क्षेत्रीय समीकरण अपेक्षाकृत मजबूत हैं। उदाहरण के तौर पर शिवपाल अगर कुछ हद तक यादव को रिझा सकते है, चंद्रशेखर दलित वोटबैंक में सेंधमारी कर सकते हैं और राजभर अपनी जाति राजभर के अलावा मौर्य सहित कुछ पिछड़ी जातियों को लुभाने में कामयाब हो सकते हैं। उम्मीद तो यह भी की जा रही है कि इनके साथ एआईएमआईएम भी आ सकती है। इसकी वजह से मुस्लिमों का खासा वोट भी इनकी संख्या में इजाफा कर सकता है।

इस गठबंधन या मोर्चे (Third Front) से अगर सबसे अधिक नुकसान किसी का होगा तो वो समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का होगा। क्योंकि इससे बड़ी संख्या में कोर यादव और मुस्लिम मतों में जहां बिखराव होगा वहीं अन्य पिछड़ी जातियां भी सपा (Samajwadi Party) से दूर जा सकती है। ऐसे में बीजेपी को फायदा हो सकता है।

 

 

 

 

 

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