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महाराष्ट्र, बिहार की तरह यूपी में भी होगा तख़्ता पलट!

By Shakti Prakash Shrivastva on December 3, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव की आवाज में रिपोर्ट सुनने के लिए आडियो बटन पर क्लिक करें।

शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा एक चुनावी सभा में दिये गए सौ विधायक लाओ और सीएम बन जाओ जैसे बयानों के निहितार्थ अब निकाले जाने लगे हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि जिस तरह महाराष्ट्र और हाल मे बिहार में सत्ता पलट हुआ है उसी तरह की सियासी सड़क पर अब उत्तर प्रदेश की सियासत भी चल पड़ी है। हालांकि कई राजनीतिक दिग्गज अखिलेश के बयान को महज सियासी तंज़ ही मान रहे है लेकिन सच्चाई ये है कि ये सियासत है। सियासत में कुछ स्थायी और कुछ भी नामुमकिन नही होता है। इसमें सब कुछ संभव है।

प्रदेश के सियासी पृष्ठभूमि के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की पहली बार 2017 सरकार बनने पर एक समय ऐसा आया था जब कई दर्जन सत्ताधारी विधायकों ने विधानसभा में नेतृत्व के खिलाफ प्रदर्शन किया था। लेकिन उस समय मजबूत विपक्ष के अभाव में उस स्थिति का कूटनीतिक उपयोग करने में विपक्ष पूरी तरह नाकामयाब रहा। लेकिन अब सूबे में इकलौता विपक्ष सपा पहले से मजबूत स्थिति में है। उसके सामने महाराष्ट्र और बिहार का हालिया उदाहरण है। पार्टी के अंदरखाने जो बिखराव था वो भी काफी हद तक थम गया है।

नेताजी मुलायम सिंह यादव के निधन और मैनपुरी उपचुनाव ने यादव कुनबे सहित सपा को ख़ासी मजबूती दी है। खासकर चाचा शिवपाल को पूरे मन से साथ आने का लाभ भी अखिलेश को मिला है। इसलिए ऐसी स्थिति में अखिलेश यादव के बयान को बहुत सामान्य तरीके से नही माना जाना चाहिए। यूपी के सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही सौ विधायकों को लाकर सीएम पद का ऑफर लोगों को अप्रत्याशित लग रहा हो लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ भी देखने को मिला उसकी भी शुरुआत कुछ इसी तरह से हुई थी।

फिलहाल राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तो इस बात की होने ही लगी हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक पृष्ठभूमि में भी जोड़-तोड़ की सियासत अठखेलियाँ कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि एक पूर्व मुख्यमंत्री जब खुले मंच से इस तरीके का बयान दे तो उसके सियासी मायने निकलने लाजिमी है। सियासती जानकार यह भी मानते है कि जिस तरीके से महाराष्ट्र में उलटफेर हुआ। जिसमें उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना के विधायकों को तोड़कर अलग पार्टी बना कर बीजेपी के सहयोग से एकनाथ शिंदे ने सरकार बना ली और स्वयं मुख्यमंत्री बन गए। कुछ इसी तरह राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिल बिहार में नितीश कुमार, दुबारा सत्तासीन हो गए। अखिलेश यादव ने भी चुनावी रैली में इस तरह का जिक्र करके एक बड़ा सियासी संकेत यूपी की सियासत में दिया है। अब देखना है कि इसका अंजाम क्या होता है।

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