Responsive Menu
Add more content here...
October 8, 2024
ब्रेकिंग न्यूज

Sign in

Sign up

जातीय दल नहीं सपना दल !

By Shakti Prakash Shrivastva on July 24, 2023
0 140 Views

                                                                                              शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव
लोकसभा चुनाव का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है पूरे देश में सियासी गतिविधियां जोर पकड़ रही है। इसी में एक ऐसी भी सियासत है जो बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों के बीच फल-फूल रही है। वो है जाति आधारित क्षेत्रीय राजनीति। खासकर उत्तर प्रदेश के संदर्भ में अगर इस राजनीति को देखें तो इस तरह की
राजनीति करने वाली पार्टियों के जितने भी तथाकथित अलंबरदार है वो अपने समाज की नब्ज पर खासी पकड़ बना रखे हैं। समाज की भलाई के नाम पर उन्हे गुमराह करना इनकी सबसे बड़ी क्वालिटी है। ये शासन सत्ता से नजदीकियाँ बना समाज को छलने का स्क्रिप्ट तैयार करते हैं। इसी स्क्रिप्ट के आधार पर मीडिया सहित सामाजिक मंचों पर अपनी राग अलापते रहते हैं। इस समय अगर गौर करें तो प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी यानि सुभासपा, निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल लिए इस सुभासपा हो या निषाद पार्टी यानि निषाद पार्टी, अपना दल (सोनेलाल), राष्ट्रीय लोक दल यानि रालोद सरीखे बहुत सारे छोटे-छोटे दल है जो जमीनी स्तर पर जाति विशेष को साध कर राजनीति कर रहे हैं। ये दल अपने समाज को अपने कौशल से यह समझाने का प्रयास करते हैं कि यदि वो सत्ता में प्रभावी हुए तो समाज का दिन बहुर जाएगा। समाज के अंतिम व्यक्ति तक के सपने पूरा होने का सब्जबाग दिखा कर ये अपने समाज में संख्या बल हासिल किए रखते हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जिस तरह की अफरा-तफरी इन दलों में इन दिनों दिख रही वो रोचक तो है ही राजनीति के एक नए आयाम का परिचय भी कराती है। राजभर सहित कुछ अन्य पिछड़ी जातियों की सियासत करने वाले सुभासपा सुप्रीमो ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश की पहली योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। बाद में वो सत्ता से मनमाफिक सहयोग न मिल पाने पर सत्ता से अलग होते हुए समाजवादी पार्टी से जा मिले। उन्हे उस दौरान यह यकीन हो चला था कि प्रदेश में सपा की सरकार बनने जा रही है। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसी भ्रम में वो चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के अति प्रभावशाली नेताओं में शुमार प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में अनापशनाप बहुत कुछ बोले। क्योंकि उन्हे योगी की सत्ता में वापसी का बिल्कुल भी भान नहीं था। अब वही राजभर दिल्ली में बीजेपी के आलाकमान की फेरी लगा उन्हे यह समझाने में कामयाब हो गए हैं कि उनके साथ रहने से पार्टी को कम से कम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और उसके आस-पास के इलाके में राहत मिल सकती है। वाराणसी और उसके आस-पास के इलाके में पिछले चुनाव में थोड़ी कमजोर साबित हुई बीजेपी को भी ऐसा लगा कि ऐसा करने से उसे फायदा मिल सकता है लिहाजा हाइकमान ने राजभर की पुरानी बाते भूल पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया। चर्चा है कि योगी सरकार के प्रस्तावितविस्तार में उन्हे जगह भी दी जाएगी। इनके अलावा निषाद समाज समेत दलितों की राजनीति को सियासत का आधार बनाने वाले निषाद पार्टी सुप्रीमो संजय निषाद भी अपनी इसी जातीय सियासी कौशल की बदौलत बीजेपी की योगी सरकार में मंत्री है। पटेल समाज सहित कुछ सहयोगी जातियों की राजनीति करते हुए केंद्र सरकार सहित प्रदेश सरकार में भागीदार अपना दल एस भी है। इसकी प्रमुख अनुप्रिया पटेल केंद्र की दोनों ही सरकार में लगातार मंत्री रही है और आज भी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बाहुल्य जाट लैंड में अच्छी पकड़ रखने वाले रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह की पार्टी के फिलहाल आठ विधायक है लेकिन सपा के सहयोगी होने के चलते सत्ता सुख सेवो वंचित हैं।
इस तरह ये जितने भी दल है जो इस तरह की जाति आधारित सियासत कर रहे हैं। वो भले ही अलग-अलग जातियों की राजनीति कर रहे हैं लेकिन उनमें एक चीज की समानता है। वो है मौका परस्ती। मतलब सालों-साल भले ही ये लोग समाज की बात करें लेकिन जब इनके हाथ सत्ता आ जाती है तो इन्हे समाज की बजाय सिर्फ इन्हे अपना कुनबा ही दिखता है। मसलन एक दशक पहले तक जिस निषाद पार्टी का प्रदेश में कोई नामलेवा नहीं था आज उनका प्रमुख संजय निषाद न केवल
राज्य सरकार में मंत्री है बल्कि उनका एक लड़का बीजेपी से संतकबीर नगर से सांसद है जबकि दूसरा लड़का चौरीचौरा विधानसभा से विधायक है। इसी तरह अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री है और उनके पति राज्य सरकार में मंत्री है। सुभासपा प्रमुख एक बार तो सत्ता सुख भोग चुके है। स्वयं सरकार में मंत्री रहे और अपने बड़े बेटे को निगम का चेयरमैन बनवा दिया था। इस बार फिर सुख भोगने की तैयारी में है। यानि इन दलों का इतिहास रहा है कि इन्हे जब भी सत्ता सुख भोगने का अवसर मिला तो इन्हे उस समय अपना समाज नहीं दिखा सिर्फ अपना परिवार ही दिखा। आश्चर्य तो ये कि इनके इतने बड़े खेल को भोली-भाली जातीय जनता समझ नहीं पा रही है। लेकिन समय बदल रहा है। वो भी समय आने वाला है जब इन जैसे नेताओं की दुकान में ताला उन्ही के समर्थक लगाने वाले हैं। सोशल मीडिया के मौजूदा दौर में जैसे-जैसे इनका समाज जागरूक होगा। समाज के लोगों पर इनकी पकड़ स्वतः ही कमजोर होने लगेगी और एक दिन समाज को सपना दिखाने वाले इन दलों की दुकान बंद हो जाएगी।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *