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टूट रहा प्रियंका गांधी का तिलिस्म !

By Shakti Prakash Shrivastva on January 25, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

          उत्तर प्रदेश में एक लंबे अरसे से अपनी खोयी हुई जमीन तलाश रही कांग्रेस पार्टी की कमान जब पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के हाथों में दी गयी। तो बहुतेरे लोगों खासकर कांग्रेसियों को लगा कि अब वाकई पार्टी का सपना पूरा हो जाएगा। हाथरस कांड सहित लखीमपुर कांड के दौरान प्रियंका जिस तरह से विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करती दिखीं। वो कांग्रेसियों के सपनों को पूरा होने की शुरुआत होने का एहसास भी करा दिया। समय बदला बनारस सहित प्रियंका की कई जनसभाओं में उमड़ी भीड़ ने भी आधार को और पुख्ता किया। लेकिन जैसे-जैसे प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तिथियाँ नजदीक आने लगी पार्टी के क्रियाकलापों से कुछ अलग और अजीब सी तस्वीर बनने लगी। जहां राजनीतिक कौशल और रणनीति प्रभावी करने का वक्त आया पार्टी बैकफूट पर खड़ी नजर आने लगी। टिकट वितरण मे भी इस तरह की कमजोरियाँ जाहिर हुई जिससे लगा कि पार्टी नेतृत्व में राजनीतिक परिपक्वता का अभाव है। इसकी इंतहा तो तब हो गयी जब महीनों से मीडिया गलियारे में सुर्खियां पा रही वरिष्ठ कांग्रेसी और पुश्तों से कांग्रेस के संस्कार में रचे बसे पड़रौना (कुशीनगर) राजघराने के प्रतिनिधि कुँवर आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोड़ बीजेपी में जाने की अटकलों के बावजूद पार्टी ने उन्हे अपने स्टार प्रचारकों की सूची में जगह दी। पार्टी की चौतरफा फजीहत तब और हो गयी जब सूची घोषित होने के दूसरे ही दिन आरपीएन ने कांग्रेस से न केवल त्यागपत्र दिया बल्कि बीजेपी का दामन थाम लिया। हद तो और हुई कि ज्वाइनिंग के समय आरपीएन ने प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि एक पार्टी में रहकर लंबा राजनीतिक जीवन जिया लेकिन जिस पार्टी में रहा अब वो पुरानी वाली नहीं रही। यह भी कहा कि अब यहा यानि बीजेपी में मुझे जो भी ज़िम्मेदारी मिलेगी उसे पूरा करूंगा। टाइटिल से ठाकुर लगने वाले आर पी एन मूलतः पिछड़ी जाति से आते हैं। पूर्वाञ्चल के कद्दावर कांग्रेसी आरपीएन के पार्टी छोड़ने से जमीन तलाश रही कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। सही मायने में यह माना जा सकता है कि पूर्वाञ्चल में आरपीएन के रूप में कांग्रेस का एक मजबूत किला ढह गया। राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा ज़ोरों पर है कि घुटने पर रेंग रही कांग्रेस को खड़ा करने आई प्रियंका ने पार्टी को खड़ा करने की बजाय जमीन पर वापस पहुंचाने का काम किया। राजनीति के जानकार कमल जी का मानना है कि प्रियंका ने कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टी को एक एनजीओ बना कर रख दिया। लड़की हू लड़ सकती हूँ, मैराथन जैसे राजनीतिक आयोजन इसके एक उदाहरण मात्र है। राजनीति के जानकारों का यह भी मानना है कि प्रियंका जब तक राजनीति में नहीं आई थी तो माना जा रहा था कि उनमे इन्दिरा गांधी की रणनीतिक कौशल है। लेकिन कहा जाता है कि योद्धा की युद्ध कौशल की क्षमता का आकलन युद्धभूमि में ही होती है। रणभूमि से बाहर से अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। प्रियंका के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब वो राजनीति के अखाड़े यानि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी कमान थामे आयी तो उनकी कमियाँ-अच्छाइयाँ दिखने लगी। आरपीएन के मामले में तो उनकी पूरी अपरिपक्वता पूरी तरह जग जाहिर हो गयी। सामान्य जानकारी रखने वाला कांग्रेसी भी प्रियंका के इस निर्णय से सकते में है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा कि कांग्रेस इस तरह देखते-देखते हम सभी को ऐसे हंसी का पात्र बना देगी इसका एहसास तक नहीं था। बीजेपी ने तो बजरिए आरपीएन एक तीर से दो निशाने का संधान किया। पहला तो ये पिछड़ा वर्ग के एक कद्दावर चेहरे के बीजेपी छोड़ सपा जाने के बाद उसी वर्ग के एक बड़े नाम को अपने पाले में लाने का और दूसरा पार्टी छोड़ कर सपा में जाने वाले मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य को उनके विधानसभा क्षेत्र पड़रौना में घेरे बंदी करने में सफल होने का। यूं तो जब चुनाव होते है तो असंतुष्ट नेताओं द्वारा एक पार्टी छोड़ दूसरे का दामन थमने का सिलसिला काफी पुराना है। पार्टी हाई कमान पर टिकट वितरण में धांधली का भी आरोप काफी सामान्य है। लेकिन चर्चा में रहने वाली वो खबर जिससे पार्टी का वाकई नुकसान हो सकता है उस पर गौर न करना खासकर प्रियंका की सबसे बड़ी नासमझी है। इतना ही नहीं जब चुनाव सिर पर हो उस समय पार्टी की जिला कार्यकारिणी घोषणा किया जाना सामान्य राजनीतिक समझ से परे है। हालांकि अभी भी वक्त है प्रियंका अबसे सबक ले राजनीतिक नफा-नुकसान को तौले बगैर कोई निर्णय न करे तो शायद आने वाले दिनों में पार्टी कि कोई नयी किरकिरी होने से बच जाएगी।

 

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