Responsive Menu
Add more content here...
April 27, 2024
ब्रेकिंग न्यूज

Sign in

Sign up

बड़बोले राजभर की बोलती बंद

By Shakti Prakash Shrivastva on July 28, 2022
0 141 Views

शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

कहते हैं कि इंसान को दंभी नहीं होना चाहिए। क्योंकि इतिहास साक्षी है कि दंभ हमेशा इंसान को गर्त में ले जाता है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में इसके सबसे बड़े उदाहरण है सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री ओम प्रकाश राजभर। राजनीति के जानकारों की माने तो राजभर मे इस बात का दंभ था कि उत्तर प्रदेश की सत्ता और वो एक दूसरे के पूरक हैं। बीएसपी से राजनीति की शुरुआत करने वाले राजभर का अतीत ये है कि बीएसपी से अलग होने पर कुछ दिन तो कांग्रेस के नजदीक रहे। लेकिन कांग्रेस से भी बहुत वाजिब अवसर न मिलता देख ये उससे दूर हो गए। फिर इन्होंने ओवैसी और बाबू सिंह कुशवाहा जैसे कुछ नेताओं के दलों को मिलकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया हालांकि 2017 विधानसभा चुनाव आते-आते यह भागीदारी मोर्चा भी कई भागों में बंट गया। राजभर ने अंततः बीजेपी से गठबंधन कर चुनाव में भाग लिया। इनके दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के 4 विधायक चुन कर विधानसभा पहुंच गए। गठबंधन कोटे के तहत योगी सरकार में ओम प्रकाश राजभर को कैबिनेट मंत्री बना दिया गया। कुछ ही दिनों में ही आदतन राजभर के अंदर का दंभ हिलोरे मारने लगा और राजभर योगी सरकार पर ही हमलावर होने लगे। कुछ महीनों बाद भी जब इनके व्यवहार में परिवर्तन नहीं दिखा तो अंततः मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इनको कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया। सरकार से बाहर होते ही राजभर योगी और उनके सरकार पर आक्रामक हो गए। इनके बोल प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल सपा से भी तीखे रहने लगे। 2022 विधानसभा चुनाव के पहले इन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लिया। चुनाव प्रचार में बीजेपी और योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध तंज और टिप्पणी करने में कइयों बार राजभर ने मर्यादाओं तक की ऐसी तैसी की। योगी के लिए कहा कि मैं जीते जी इन्हे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नही बैठने दूंगा। ऐसे लगता था कि लोकतंत्र राजभर के यहाँ गिरवी हो और परिणाम इनके इशारे से तय होते हों। इनके दंभ से कभी-कभी ऐसा लगता था कि इन्हे इस बात का इत्मीनान हो गया था कि प्रदेश में सपा की ही सरकार बननी है। क्योंकि चुनावी सभाओं में यहाँ तक कहते थे कि सरकार बनते ही योगी को उनके मंदिर वापस भिजवाऊँगा। लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो इनके दावे पूरी तरह से फेल्। प्रदेश में दुबारा योगी आदित्यनाथ की सरकार बन गई। सपा की सरकार बनने के मुगालते में योगी से आपसी संबंधों की गहरी खाई खींच चुके राजभर अपनी आदत के अनुरूप बीजेपी की बजाय सपा और सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के ही खिलाफ मोर्चा खोल दिया। हुआ ये कि इन्होंने अखिलेश से अपने लड़के को एमएलसी बनाने को कहा लेकिन अखिलेश ने ऐसा नहीं किया। इस पर राजभर विधानसभा चुनाव में पराजय का ठीकरा अखिलेश के सिर फोड़ने लगे। जगह-जगह अखिलेश पर टिप्पणियाँ करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों तक इनकी सारी कारगुजारियों को अनसुना करने वाले अखिलेश ने इनके साथ ही अपने चाचा शिवपाल को भी जहां सम्मान मिले वहाँ जाने संबंधी पत्र जारी करा दिया। सपा के दरवाजे बंद होने पर राजभर के लिए अब एक ही रास्ता अपने पुराने घर बीएसपी वापसी का दिखने लगा। बीएसपी और उसके सुप्रीमो मायावती के लिए इनके सुर में भी बदलाव आने शुरू हो गए। लेकिन इससे पहले की मायावती के स्तर पर कुछ निर्णय हो मायावती के भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय कोआर्डिनेटर आकाश आनंद ने किसी का नाम लिए बगैर ट्वीट कर दिया कि पार्टी में अवसरवादियों के लिए कोई स्थान नही है। इस ट्वीट से बीएसपी में राजभर के जाने संबंधी प्रयासों को विराम लगने का अहसास होने लगा। हालांकि इसी दौरान एक सोची समझी रणनीति के तहत राजभर को सपा गठबंधन को खंडित करने के भाजपाई मंसूबे को अंजाम तक पहुंचाने के एवज में राजभर को वाई श्रेणी की सुरक्षा दे दी गयी। यह भी सच है कि प्रदेश में खासकर सत्तारूढ़ बीजेपी को राजभर की कोई आवश्यकता नही है और सपा से राजभर का तलाकनामा हो ही चुका है। ऐसे में राजभर के पास बहुत सीमित विकल्प है। एक तो वो फिर से छुटभइये दलों को एकजुट कर  बीजेपी या बीएसपी से गठबंधन की कोशिश करे। हालांकि इसकी संभावना भी बहुत कम है। अगर किसी समीकरण के चलते बीएसपी से लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कोई गठबंधन होता भी है तो परिणाम में इनका कोई योगदान होगा इसमें संशय है। भविष्य में क्या होगा किसी को नही मालूम लेकिन सच्चाई ये है कि अपने दंभी स्वभाव के चलते आज राजभर प्रदेश की राजनीति में हाशिये पर है। राजनेताओं के लिए अछूत जैसे हो गए है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *