Responsive Menu
Add more content here...
March 21, 2025
ब्रेकिंग न्यूज

Sign in

Sign up

बीजेपी में आएंगे जयंत !

By Shakti Prakash Shrivastva on August 2, 2023
0 397 Views

शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                      उत्तर प्रदेश और केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी का लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश पर खासा फोकस है। फोकस होने के पीछे वजह भी है कि उत्तर प्रदेश देश का इकलौता ऐसा राज्य है जहां से अस्सी की संख्या में लोकसभा सांसद चुने जाते हैं। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में जिन सीटों पर बीजेपी की हार हुई थी उनके साथ-साथ बीजेपी पूरे प्रदेश की मौजूदा जमीनी समीकरण को पुख्ता तरीके से साधने के लिए प्रयासरत है। सुभासपा सुप्रीमो ओमप्रकाश राजभर और पूर्व मंत्री दारा सिंह चौहान को दुबारा साथ लाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में सियासी समीकरण साध चुकी बीजेपी अब पश्चिम उत्तर प्रदेश यानि जाटलैंड पर पकड़ मजबूत करने के लिए प्रयासरत है। बीजेपी इस तरह लोकसभा चुनाव से पहले अपनी सभी कमजोर कड़ियों को चुस्त-दुरुस्त कर लेना चाहती है। इसी कड़ी में वो पश्चिम में राष्ट्रीय लोकदल को अपने साथ लेना चाहती है। लेकिन अब यहाँ प्रश्न ये है कि पिछले विधानसभा चुनाव से लगातार सपा के गठबंधन में सहयोगी रहे और मौजूदा दौर में नए बने विपक्षी गठबंधन INDIA के सदस्य के तौर पर मणिपुर दौरा करने वाले राष्ट्रीय लोकदल सुप्रीमो जयंत चौधरी का रुख क्या है। क्या बीजेपी की मंशा के अनुरूप वो भी साथ जाना चाहेंगे या फिर INDIA के साथ ही बने रहते हुए चुनाव लड़ेंगे।

जयंत चौधरी के बीजेपी के साथ आने और न आने को लेकर सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है। बीजेपी की प्रदेश इकाई का मानना है कि जयंत अगर गठबंधन सहयोगी के तौर पर आते हैं तो उन्हें फिलहाल जीती हुई लोकसभा सीटें बीजेपी को अपने खाते से देना समझदारी नहीं होगी। लेकिन यदि वो बीजेपी में अपनी पार्टी का विलय कर लें तो उनको मनचाही सीटें कमल निशान पर देने में पार्टी को कोई दिक्कत नहीं है। यहाँ मसला ये हैं कि हम अगर कम सीटें लड़ेंगे तो जीतेंगे भी कम। साथ ही अपनी जीती सीटें सहयोगियों के लिए छोड़कर अपने पैरों में कुल्हाड़ी क्यों मारें..? हालांकि इन सब तर्कों के पीछे बीजेपी के अतीत का उदाहरण है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब बीजेपी नयी ऊर्जा के साथ चुनाव में उतरी थी तो उस समय उसने पूर्वाञ्चल के प्रभावी कुर्मी मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए अपना दल से गठबंधन कर लिया था। लेकिन उस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मतदाताओं को साधना उसके लिए दुरूह लग रहा था। तय हुआ कि राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया जाए। प्रयास भी हुआ लेकिन तत्कालीन प्रभारी अमित शाह ने अंततः बिना रालोद के चुनाव लड़ने का फैसला लिया। फैसला सही साबित हुआ और बीजेपी के अपेक्षा से अधिक सीटें मिली। चुनाव में 6 बार बागपत की सीट से सांसद रहे स्वर्गीय चौधरी अजीत सिंह तक अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। इतना ही नहीं उनके बेटे जयंत चौधरी को भी मथुरा में पहली बार चुनाव लड़ रहीं बीजेपी उम्मीदवार हेमा मालिनी ने शिकस्त दी थी। यानि कि  जाट वोट बैंक वाली टेंशन पार्टी की खत्म हो गई थी। परिणाम उसके अनुकूल रहा था। अगले चुनाव यानि 2019 लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने प्रदेश में गठबंधन कर चुनाव लड़ा। रालोद भी उनके साथ गठबंधन में शामिल थी। गठबंधन से उपजे समीकरण को लेकर बीजेपी चिंतित हुई। लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो सारे कयास धरे के धरे रह गए। आरएलडी को इस गठबंधन में कुल 3 सीटें मिली थी। उसे तीनों ही सीटों पर मात मिली। दिवंगत अजीत सिंह को मुजफ्फरनगर सीट पर बीजेपी के संजीव बालियान ने पराजित किया। तो वहीं रालोद की गढ़ बागपत सीट पर जयंत को बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने मात दी। मथुरा की लोकसभा सीट पर रालोद के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमा मालिनी ने हराया।

इससे उत्साहित बीजेपी को 2022 के विधानसभा चुनाव में अपेक्षाकृत अच्छी सफलता मिली। जबकि सपा के साथ गठबंधन में रालोद ने कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन उसे सिर्फ 8 सीटों पर मिली विजय से ही संतोष करना पड़ा था। ऐसे में एक बार फिर चुनाव आ रहा है और बीजेपी के साथ जयंत चौधरी आने को इच्छुक भी लग रहे हैं। लेकिन मामला उनके द्वारा मांगी हुई सीटों और उनकी संख्या में अटकता जा रहा है। वो कम से कम 5 या 6 सीटों पर दावा कर रहे है लेकिन बीजेपी देने के पक्ष में नही है। लिहाजा बात फाइनल नहीं हो पा रही है। अब देखना है कि चुनाव के और नजदीक आने तक जयंत अपने इसी स्टैंड पर कायम रहते है या उसमें शिथिलता बरत बीजेपी के साथ आ जाते हैं।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *