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January 14, 2025
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नीतीश एनडीए के साथ रहेंगे कि नही !

By Shakti Prakash Shrivastva on July 3, 2024
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                                                                                      शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

देश की सियासत में पलटू कुमार के नाम से ख्याति प्राप्त नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर ऐसा कुछ कर रहे हैं जिससे उनके ऊपर उनके स्थापित चरित्र के अनुरूप शक गहराने लगा है कि नीतीश एनडीए के साथ रहेंगे कि नही। क्योंकि जिस तरह से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बतौर जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष पार्टी के केन्द्रीय कार्यसमिति की बैठक में निर्णय लिया है उससे उनके एनडीए में रहने और न रहने दोनों ही स्थितियों के संकेत मिल रहे है।

नई दिल्ली में आयोजित जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में शनिवार को जहां एक तरफ पार्टी ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी हर हाल में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए के साथ ही रहेगी वही दूसरी तरफ पार्टी ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और अन्य पिछड़ा वर्ग, अत्यंत पिछड़ा वर्ग,अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए उच्च आरक्षण को नौवीं अनुसूची में शामिल करने जैसी मांग कर केंद्र सरकार की पेशानी पर बल ला दिया है। अब सामान्य सियासी समझ रखने वाले लोगों के लिए यह समझना मुश्किल है कि आखिर कार्यसमिति की बैठक में नीतीश की मौजूदगी में लिए गए इन निर्णयों का अर्थ क्या है। नीतीश गठबंधन में वाकई रहेंगे या दबाव की सियासत के आधार पर जब तक अपना सियासी उल्लू सीधा होता रहे तब तक एनडीए में बने रहेगे नहीं तो गठबंधन के बाहर आइएनडीआइए गठबंधन का रुख कर लेंगे। चूंकि यह भी सच्चाई है कि विपक्षी दलों के इस गठबंधन की नींव भी नीतीश कुमार द्वारा ही रखी गई थी। साल-डेढ़ साल पहले जब नीतीश ने एनडीए गठबंधन से अलग हो राजद के साथ गठजोड़ बना न केवल बिहार सरकार में पूर्ववत मुख्यमंत्री बने रहे बल्कि नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ बीजेपी से देश को मुक्ति दिलाने की मुहिम की शुरुआत करते हुए एक विपक्षी गठबंधन का ताना-बाना भी बुना था। इसके लिए बाकायदा कई दिनों तक दिल्ली में कैंप भी किया था और कई सियासी दिगजजों से मिल इसकी रायशुमारी भी की थी। गठबंधन का स्वरूप निर्धारित कर उसकी पहली बैठक भी पटना में ही आयोजित की थी। लेकिन ऐसा बहुत दिनों तक नहीं चल पाया। क्योंकि अपनी आदत से मजबूर नीतीश कुमार ने एकबार फिर पलटी मारी और फिर से राजद को मझधार में छोड बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री की कुर्सी बनाए रखने में कामयाब रहे।

नीतीश की इनही पुरानी मौका परस्ती वाले गुड के चलते पार्टी कार्यसमिति के फैसले गठबंधन और केंद्र सरकार के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं।

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