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January 14, 2025
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एक बार फिर ठगे गए शिवपाल !

By Shakti Prakash Shrivastva on July 29, 2024
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                                                                                     शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव
यह कहना कहीं से भी अतिशयक्ति न होगी कि समाजवादी पार्टी की सियासी व्यवस्था में पार्टी के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव एक बार फिर ठगी के शिकार हो गए है। यह कहने का आशय यहाँ कttई ये नहीं है कि शिवपाल यादव के साथ कोई फायनेंशियल फ्रांड हुआ है l ब्लकि उनके साथ वो हुआ है जो उनकी सियासी भविष्य के लिए ठीक नहीं है l मतलब साफ है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में प्रतिष्ठित यादव कुनबे यानि मुलायम सिंह यादव कुनबे के लिए शिवपाल यादव का जो सियासी योगदान रहा है उसके एवज में उन्हें आज जो मिलना चाहिए वो नहीं मिल सका है l
ऐसा इसलिए कहना पड रहा है कि शिवपाल यादव ने मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के दौरान अंतिम बार सपा में वापसी की थी। उस समय उन्होंने अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का भी पूर्णतया सपा में विलय कर दिया था। मैनपुरी के लोकसभा उपचुनाव में डिम्पल यादव को मिली रिकार्ड जीत में भी शिवपाल यादव की भूमिका अहम मानी गई थी। क्योंकि उपचुनाव प्रचार के दौरान अपने सियासी अनुभवों के चलते उन्होंने ऐसी रणनीति बनाई जिसके चलते वहाँ पार्टि प्रत्याशी डिम्पल यादव की जीत ने कई दिग्गजों की जमानत ज़ब्त करा दी l हर तरफ यह चर्चा होने लगी कि चाचा शिवपाल यादव के साथ आते ही पार्टी ने इतिहास कायम कर दिया l कुछ ने इसे पार्टी संस्थापक मुलायम सिंह यादव को सच्ची श्रद्धांजलि बतायी l क्योंकि मैनपुरी लोकसभा सीट का उपचुनाव मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त होने के चलते ही हुई थी l इस वजह से इस सीट का परिणाम पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था l सियासी गलियारे में इस बात की भी खूब चर्चा हुई थी कि जल्द ही शिवपाल को पार्टी में कोई अहम पद दिया जाएगा। तुरंत तो नहीं लेकिन कुछ माह बाद उन्हे पार्टी का महासचिव बनाया गया। एक लंबे अंतराल के बाद बीते लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र आदित्य यादव को बदायूं लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया। आदित्य यादव जीते भी। हालांकि इसके अलावा शिवपाल के हिस्से कुछ खास नहीं आया। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके शिवपाल के लिये एक बार फ़िर उम्मीद जतायी गई कि उन्हे अध्यक्षी सौंपी जा सकती है। क्योंकि नरेश उत्तम के बाद से पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी खाली थी l लेकिन श्यामलाल पाल के अध्यक्ष बनते ही वो भी आस टूट गई। जब अखिलेश यादव ने सूबे की सियासत छोड यानि विधानसभा की सदस्यता छोड केंद्र की सियासी पारी शुरू की तो प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्त हो गया। शिवपाल के सियासी कद काठी को देखते हुए यह चर्चा शुरू हो गई कि इस पद पर अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल को बिठा सकते हैं। लेकिन बीते रविवार को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इस पद पर डुमरियागंज के विधायक और पार्टी के कद्दावर नेता माता प्रसाद पाण्डेय की ताजपोशी कर शिवपाल की इस अंतिम उम्मीद को भी ध्वस्त कर दिया। इस तरह से माना जा रहा है कि शिवपाल एक बार फिर ठगे गए।
उत्तर प्रदेश की सियासत में शिवपाल यादव की पहचान एक जमीनी नेता के तौर पर की जाती है। पार्टी संगठन के स्तर पर इनकी क्षमता अद्भुत है जो कई बार प्रमाणित भी हो चुकी है। इसी वजह से सपा के संस्थापक और इनके बड़े भाई मुलायम सिंह यादव भी इनकी सांगठनिक दक्षता के कायल थे। शिवपाल यादव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष, कैबिनेट मंत्री सहित कई निकायों के चेयरमैन भी रह चुके है। पिछले दशक में सगे भतीजे अखिलेश यादव के व्यवहार से आहत शिवपाल ने न केवल पार्टी छोड़ दी थी बल्कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अपनी एक अलग सियासी पार्टी भी बना ली थी। हालाँकि कई बार बीच में कुछ लोगों की मध्यस्थता के नाते वो वापस परिवार और पार्टी में आए लेकिन बाद में फिर अखिलेश से सामंजस्य न बन पाने के चलते उन्हे वापस जाना पड़ा। लेकिन मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के दौरान अखिलेश की पत्नी और पार्टी प्रत्याशी डिम्पल यादव के अनुरोध पर जब शिवपाल पार्टी और परिवार में वापस आए तब से आज तक वो पार्टी में बने हुए हैं। शिवपाल मौजूदा समय में जसवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से सपा के विधायक हैं। ऐसे में जबकि पिछले दिनों सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मैनपुरी में ये कहा था कि हम चाचा के लिए कुछ बड़ा सोच रहे है और जल्द ही कुछ करेंगे। इससे एक बार फिर शिवपाल यादव को इस बात का भरोसा हो गया कि शायद भतीजा उनके सियासी भविष्य को लेकर चिंतित है और अब वो उनके लिए कुछ न कुछ करेगा l
लेकिन अब मौजूदा परिस्थिति में अखिलेश के उस बयान का कोई मतलब नहीं रह गया है क्योंकि अब तो ऐसी कोई संभावना नहीं बची है जिसको देखकर यह कहा जा सके कि चाचा शिवपाल के लिए भतीजा अखिलेश अब यह कर के चाचा के योगदान का प्रतिफल देंगे। कुछ सियासी जानकारों का ऐसा भी मानना है कि 2027 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवपाल की वास्तविक ताजपोशी करेंगे अखिलेश l लेकिन ऐसा मानना महज कोरी कल्पना ही कहीं जायेगी क्योंकि तब क्या तस्वीर बनेगी क्या होगा ये सब भविष्य के गर्भ में है। उसके लिए अभी कुछ भी सोचना बेमानी है l आज के सन्दर्भ में तो बस यही कहा जा सकता है फिलहाल तो चाचा शिवपाल के साथ भतीजे ने ठगी कर दी है।

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