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December 9, 2024
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चंद्रशेखर से दबाव में बीएसपी !

By Shakti Prakash Shrivastva on June 20, 2024
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                                                                                   शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

जिंदगी के अभी चार दशक का अनुभव भी हासिल न करने वाले एक युवा ने उत्तर प्रदेश में चार बार से अधिक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुकी मायावती और उनकी पार्टी की रातों की नींद उड़ा दी है। यह सच्चाई है कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की पहचान सियासत में उनके अलग तेवर की वजह से की जाती है। कभी उनके उसी तेवर के चलते उन्हे उत्तर प्रदेश जैसे भीमकाय महत्व रखने वाले सूबे की कई बार मुख्यमंत्री बनने का मौका भी दिया। लेकिन अब वही तेवर उनके और उनकी पार्टी के लिए बोझ बनता जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए से अपने को अलग रखते हुए अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था। परिणाम सबके सामने है। पिछले लोकसभा में दस सीटों पर कब्जा रखने वाली बीएसपी इस बार एक सीट से भी महरूम हो गई। कहते है कि इंसान को समय के साथ-साथ बदलना चाहिए। क्योंकि स्थान-काल-पात्र बदलने से परिभाषाएं भी बदल जाती है। लेकिन मायावती ने समय के साथ अपने को बिल्कुल भी नहीं बदला। हालांकि अपने जिस भतीजे आनंद को मायावती ने अपना उत्तराधिकारी बनाया था उसके अंदर आज की सियासत के नब्ज की समझ थी। लेकिन अपने व्यवहार से मजबूर मायावती ने उससे नाराज हो उसे भी पद और जिम्मेदारी से हटा दिया। ऐसे में चुनाव दर चुनाव बीएसपी का वोटबैंक सरक रहा है। लगभग हाशिये पर पहुँच चुके वोट बैंक के आंकड़ों पर आजाद समाज पार्टी सुप्रीमो चंद्रशेखर आजाद रावण की पकड़ मजबूत हो रही है। चंद्रशेखर इस बार बतौर निर्दल प्रत्याशी पश्चिमी यूपी की नगीना लोकसभा सीट से सांसद भी चुन लिया गया है।

जबकि सूबे में कई बार सत्ता संभाल चुकी बीएसपी का आज विधानसभा में उमाशंकर सिंह के रूप में एकमात्र विधायक है। लोकसभा, राज्यसभा और विधान परिषद में पार्टी की नुमाइंदगी शून्य है। मायावती आज भी अपने शैली में बहुजन समाज पार्टी को चला रही हैं।

अभी पार्टी अपनी स्थिति की समीक्षा करने वाली ही थी कि चंद्रशेखर रावण की पार्टी आजाद समाज पार्टी ने प्रदेश में दस विधानसभा सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया। अब विधानसभा उपचुनाव में उतरना बीएसपी के लिए मजबूरी बन गई। उसे हर हाल में उपचुनाव लड़ना ही होगा। वरना संभव है कि उपचुनाव में दलित वोटबैंक आजाद समाज पार्टी के पाले में खड़ा हो जाए। हालांकि बीएसपी ने लोकसभा चुनाव के साथ हुए प्रदेश के चार सीटों के लिए हुए विधानसभा उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन लोकसभा की ही तरह उपचुनाव में भी पार्टी को एक भी सीट मयस्सर नही हुई। इस बार पार्टी ने उपचुनाव में जीत के लिए फूल्प्रूफ प्लान बनाने की जिम्मेदारी जिलाध्यक्षों को दे दी है। बस हाइकमान उन पर अंतिम निर्णय लेगा। इस तरह बीएसपी इस समय पूरी तरह से चंद्रशेखर रावण के सियासी चालों से दबाव में है। पार्टी का सियासी रणनीति भी चंद्रशेखर की नीतियों को ध्यान में रख कर बनाई जा रही है।

 

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