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June 16, 2025
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श्रद्धांजलि : यूं ही कोई रतन नहीं हो जाता …

By Shakti Prakash Shrivastva on October 10, 2024
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                                                                                            शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव
यूं तो जो कोई संसार में आया है उसे एक न एक दिन जाना ही है। लेकिन टाटा समूह के प्रमुख रतन टाटा का जाना किसी व्यक्ति नहीं समूचे देश को एकबारगी असहज कर दिया। इस आशय का प्रमाण है उनके निधन की सूचना के बाद से सोशल मीडिया पर आ रही संवेदनात्मक टिप्पणिया और भावांजलि। अब यहाँ सोचने योग्य एक प्रश्न है कि सोशल मीडिया पर तो हर चर्चित शख्शियत के निधन पर ऐसी बहुतेरे श्रद्धांजलि अर्पित करते भाव संदेश बड़ी संख्या में आते ही रहते हैं। लेकिन यहाँ यह जानना जरूरी है कि औरों में और रतन टाटा के लिए की गयी टिप्पणियों में अंतर है। यह अंतर है उनकी नितांत मानवीय मूल्य आधारित व्यक्तित्व होने का। जिसका उनके नज़दीकियों के साथ-साथ उन करोड़ों-करोड़ देशवासियों ने भी महसूस किया है जो कभी मिलना तो दूर उनको टीवी और पत्र-पत्रिकाओं में ही मात्र देखा-पढ़ा है।
बनारस के वरिष्ठ पत्रकार और एक प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउस के मालिक राजेश गुप्ता को एक बार रतन टाटा से मिलने का अवसर मिला था। निधन की सूचना से व्यथित राजेश ने रतन टाटा के व्यक्तित्व को जिस तरह से रेखांकित किया उसे समझने के लिए यहाँ हूबहू उन्ही के शब्दों में उल्लेख किया जा रहा है। बक़ौल राजेश एक बार की बात है बनारस में नवनिर्मित मदन मोहन मालवीय कैंसर संस्थान का उदघाटन होना था। उदघाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करकमलों द्वारा रतन टाटा की मौजूदगी में होना प्रस्तावित था। उदघाटन के पहले टाटा ट्रस्ट के एक अधिकारी ने मुझसे संपर्क कर इस मौके के लिए कैंसर के इलाकाई कारकों को उद्धृत करते हुए किसी केस स्टडी पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने का प्रस्ताव दिया गया। मैंने इस प्रस्ताव को स्वीकारते हुए निर्धारित समय में निर्धारित बिन्दुओं के आलोक में एक 30-35 मिनट की डाक्यूमेंट्री फिल्म तैयार कर दी। टाटा ट्रस्ट ने उसे हरी झंडी दिखाते हुए अवसर विशेष पर प्रदर्शन के लिए उसे रख लिया। आज से लगभग चार-पाँच साल पहले का वाकया है जब उदघाटन का दिन आ गया। टाटा ट्रस्ट के मुखिया समेत रतन टाटा ने उस फिल्म को देखा। फिल्म की स्क्रिप्ट और प्रस्तुति रतन टाटा को बेहद पसंद आई। उन्होने मौजूद अधिकारियों से पूछा कि मुंबई में किससे ये बनवाई। अधिकारियों ने जवाब दिया कि इसे लोकल बनारस के ही एक मीडिया हाउस से तैयार कराई गयी है। इस पर उन्होने तुरंत बनाने वाले को बुलवाने की बात की। मौका प्रधानमंत्री की मौजूदगी का था। जहां परिंदा पर न मारे ऐसी सुरक्षा-व्यवस्था थी। लेकिन आनन-फानन में अधिकारियों ने मुझसे संपर्क किया और मेरे लिए प्रवेश पत्र बनवा कर मुझे बुला लिया। मै जब उनके सामने पहुंचा तो वाकई मैं अभी भी वो क्षण याद कर रोमांचित हो जाता हूँ कि अभी तक पत्रकारिता में विलक्षण शब्द का प्रयोग ही किया था लेकिन सामने वाकई साक्षात एक विलक्षण व्यक्तित्व होने का एहसास हुआ। उनका मेरे बारे में सहज टिप्पणी करना और बैटरी कार्ट में अपने साथ बैठा कर बातें करना। आज भी वैसे ही याद आ रहा है। उन्होने फिल्म की स्क्रिप्ट जिसमें मैंने सिंगरौली के एक ऐसे कैंसर रोगी की व्यथा कथा को प्रस्तुत किया था जिसके भाई बंधुओं ने कैंसर होने की जानकारी मिलते ही उसे घर से निकाल दिया था। बेहद मार्मिक तरीके से प्रस्तुत किए गए कथावस्तु ने रतन टाटा को खासा प्रभावित किया जिसके नाते उन्होने मुझसे मुलाक़ात की।
इसके अलावा एक और कहानी किसी ई पेपर में पढ़ने को मिली। जिसमें मोहित नाम के एक शख्स का संस्मरण छपा था। जिक्र 2 मार्च, 2018 का है, जब रतन टाटा जमशेदपुर के जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में नवल टाटा हॉकी एकेडमी के भूमि पूजन के लिए आए थे। अन्य देशवासियों की तरह मोहित भी रतन टाटा जैसी शख्शियत से मिलने का मोह नहीं छोड़ सके लिहाजा वो कार्यक्रम स्थल पर जा पहुंचे। बक़ौल मोहित जैसे ही कार्यक्रम स्थल पर रतन टाटा पहुंचे उनकी तरफ भीड़ उमड़ पड़ी। मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा था। मै जैसे ही उनके थोड़ा करीब पहुँचने को हुआ वहाँ उनके साथ चल रहे सुरक्षाकर्मियों ने मुझे रोक लिया। संयोगवश रतन टाटा की नजर पड गयी। उन्होने स्वयं सुरक्षाकर्मी को टोकते हुए मुझे नजदीक आने को कहा। नाम आँखों से रतन टाटा को याद करते हुए मोहित बताते हैं कि मैंने हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया तो रतन टाटा ने एक कदम आगे बढ़ते हुए मुझे अपने गले लगा लिया। उनके गले लगने से अधिक लगने के अंदाज ने मुझे प्रभावित किया। मोहित की मुताबिक उनके गले लगने पर उन्हे एक अलग किस्म की सकारात्मक ऊर्जा का एहसास हुआ। जिसे आज भी वो महसूस करते हैं। मुनका चेंबर ऑफ कॉमर्स के सदस्य रहे मोहित बताते हैं कि रतन टाटा न सिर्फ एक महान उद्योगपति थे, बल्कि उनका मानवीय दृष्टिकोण भी अद्वितीय था। 2012 में जमशेदपुर के चेंबर ऑफ कॉमर्स के कार्यक्रम में आए रतन टाटा के एक प्रेरणादायी उद्बोधन को भी मोहित याद कर भावुक हो जाते हैं। जिसमें रतन टाटा ने कहा था कि GIVE RATHER THAN ASK यानी मांगने के बजाय दें। मतलब हमें समाज से सिर्फ मांगना नहीं चाहिए, बल्कि समाज को कुछ देना भी चाहिए। यह सच है कि समाज और मानवता के प्रति ऐसा उदार व्यक्तित्व रतन टाटा कोई यूं ही नहीं बन जाता।

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