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यूपी में कमजोर होती एनडीए !

By Shakti Prakash Shrivastva on September 15, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                             उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारे में कोई माने या न माने लेकिन यह पुख्ता सच्चाई है कि राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन यानि एनडीए का प्रभाव पहले की तुलना में कमजोर हुआ है। हालिया घोसी विधानसभा का उपचुनाव परिणाम इसका पुख्ता उदाहरण है। गठबंधन की यह कमजोरी बाहर भी दिख रही है और घटक दल के अंदर भी। ऐसे में बाहर की जहां तक बात है तो घोसी विधानसभा के उपचुनाव के अलावा उसी दिन प्रदेश के लखनऊ, मिर्जापुर, जालौन और बरेली जैसे जिलों में जिला पंचायत के लिए भी उपचुनाव हुए थे। इसमें भी गठबंधन को पराजय का सामना करना पड़ा था। यह पराजय भी प्रदेश में गठबंधन की घटती साख का प्रमाण है। वैसे ही अंदर खाने में घोसी परिणाम ने सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) जैसे घटक दलों के प्रभाव की कलई खोल दी है जो गठबंधन खासकर बीजेपी के लिए चिंता का सबब है। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी प्रदेश की सभी 80 सीटों पर जीत का सपना देख रही है तो उसे अंदर और बाहर दोनों ही मंचों पर मजबूती के प्रयास करने होंगे।

एनडीए के कमजोर होने का सबसे बड़ा सियासी फायदा राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के नवगठित गठबंधन आईएनडीआईए को हुआ है। प्रदेश में इसका सबसे मजबूत घटक समाजवादी पार्टी है लिहाजा सबसे अधिक फायदा भी आने वाले दिनों में सपा को ही मिलने की संभावना है। घोसी की जीत के बाद से आईएनडीआईए गठबंधन में सपा का दबदबा पहले की अपेक्षा बढ़ा है जो लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे के वक्त पार्टी का मजबूत आधार बनेगा। कमजोर होते एनडीए खासकर बीजेपी के चिंतक जो यूपी में मिशन 80 की योजना बना रहे हैं। वे अब अपनी पुरानी रणनीति को बदलने पर विचार कर रहे हैं। न केवल विचार कर रहे हैं बल्कि इस पर अमल भी करना शुरू कर दिया है। मिशन 80 के तहत एनडीए के प्रमुख तीनों घटक दलों सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) लोकसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर जिस प्रेशर पालिटिक्स की रणनीति के तहत काम कर रहे थे वे एक झटके में घोसी चुनाव परिणाम के बाद असारहीन हो गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में 78 सीटों पर बीजेपी और दो सीटों पर अपना दल (एस) चुनाव लड़े थे। इनमें से बीजेपी को 62 सीटों पर और अपना दल(एस) को दो सीटों पर जीत मिली थी। घोसी चुनाव के शुरुआत से ही सियासी विश्लेषक इस चुनाव को  एनडीए और आईएनडीआईए गठबंधनों के बीच सीधी टक्कर मान रहे थे। उन्होंने इसे लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी माना था। ऐसे प्रतिष्ठापरक चुनाव के साथ-साथ प्रदेशभर में हुए सभी उपचुनावों में हार का सीधा फायदा अगले पक्ष यानि आईएनडीआईए गठबंधन को आगामी चुनाव में मिलेगा ऐसा माना जा रहा है। घोसी विधानसभा उपचुनाव के साथ जो जिला पंचायत आदि के उपचुनाव हुए उसमें लखनऊ में सपा प्रत्याशी ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीत लिया। मिर्जापुर में अपना दल (एस) से सपा ने सीट छीनते हुए जीत हासिल की। इसके साथ ही जालौन की पहाड़गंज सीट और बरेली की बहेड़ी में वार्ड 16 की सीट भी सपा के हिस्से में गई। यही वजह है कि बीजेपी या गठबंधन विरोधी नेताओं का मनोबल इन दिनों काफी बढ़ गया है। बानगी के तौर पर सपा महासचिव शिवपाल यादव के बयानों को ही देखें। उन्होंने कहा था कि अब सोशल मीडिया का जमाना है हर आदमी हर बात जानता, देखता और सुनता है। ऐसे में जनता तय कर चुकी है कि इन जुमलेबाजों को सत्ता से हटाना है। हम लोग लोकसभा का चुनाव भी घोसी के चुनाव की तर्ज पर ही लड़ेंगे।

इन चुनाव परिणामों से उतसाहित सपा का फोकस प्रदेश के उन सीटों पर अब ज्यादा हो गया है जहां 2019 लोकसभा चुनाव में हार का अंतर बहुत कम वोटों का रहा था। ऐसी लगभग 50 सीटें हैं। इनमें से 38 सीटें पिछली बार बसपा के खाते में थीं। सपा ने इनमें से 35 जिताऊ सीटें चिन्हित की हैं जिन पर वो तेजी से काम कर रही है। घोसी की जीत के बाद से आईएनडीआईए गठबंधन खासकर सपा का जिस तरह से उत्साह बढ़ा है यदि यूं ही वो लोकसभा चुनाव तक बरकरार रहा तो निःसन्देह प्रदेश की सियासी तस्वीर पहले की अपेक्षा चुनाव बाद बदली हुई दिख सकती है।

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