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December 11, 2024
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योगी की ये कैसी घेराबंदी !

By Shakti Prakash Shrivastva on July 20, 2024
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                                                                                                  शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

अगर उत्तर प्रदेश में होनेवाले दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव को छोड़ दँ तो इन दिनों सूबे में कोई खास सियासी हलचल नहीं है। लेकिन प्रदेश के सियासी गलियारे में सियासी बाजार खूब गरम है। हालांकि इस गर्मी के पीछे किसी विपक्षी दल का कोई भूमिका नहीं है। इस बार की सियासी गर्मी पैदा करने वाले भी सत्ताधारी है और जिनकी वजह से ऐसा हो रहा है वो भी सत्ताधारी हैं। मतलब बीजेपी से जुड़े लोग ही है जो मुख्यमंत्री योगी के खिलाफ इन दिनों मोर्चा खोले हुए है। अब यहाँ जानना आवश्यक है कि आखिर ऐसा क्यों है। इस सियासी घेराबंदी को समझने के लिए लगभग एक दशक पहले हुई गतिविधियों को खंगालना होगा।

2017 के विधानसभा चुनाव में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बहुमत का जनादेश मिला तो सरकार बनाने के लिए योग्य मुख्यमंत्री की खोज शुरू हुई। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी, केशव प्रसाद मौर्य आदि की चर्चा के बाद गाजीपुर के सांसद मनोज सिन्हा के नाम पर लगभग सहमति बन गयी थी। लेकिन रातों-रात बदले घटनाक्रम में गोरखपुर के सांसद और गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ को आनन-फानन

में मुख्यमंत्री बना दिया गया। सियासी गलियारे में हुई चर्चा के मुताबिक ऐसा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की दबाव में हुआ। चूंकि पार्टी पर लगभग एकतरफा प्रभाव रखने वाली गुजरात लाबी खासकर अमित शाह और नरेंद्र मोदी को एक बारगी यह निर्णय बहुत अच्छा नहीं लगा। समय के साथ-साथ योगी और गुजराती लाबी के बीच उपजी खाई कम होने की बजाय और बढ़ती ही गई। लाबी ने पिछले सात साल की अवधि में योगी के मानमर्दन का कोई अवसर नहीं छोड़ा। योगी के मुखर विरोधी उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को चुनाव हारने के बावजूद उपमुख्यमंत्री बनाए रखना, प्रधानमंत्री कार्यालय में सेवारत रहे आईएएस अधिकारी ए के शर्मा को मीडिया में चर्चा कराने के बाद प्रदेश की सियासत में इंट्री कराई और उन्हे ऊर्जा और नगर विकास विभाग सरीखे बड़े विभाग का कैबिनेट मंत्री बनवाया। लगातार अपने पसंद का मुख्य सचिव बनाए रखा, सहयोगी दलों के नेताओं को भी छोटी-छोटी बातो के लिए दिल्ली तलब कर सियासी संदेश देना जैसे बहुतेरे क्रियाकलाप है। लेकिन अपने मूड के अलग किस्म वाले सियासी व्यक्तित्व योगी आदित्यनाथ ने भी गुजराती लाबी की किसी चाल को बहुत आसानी से सफल नहीं होने दी। बल्कि बखूबी एहसास भी करवाते रहे। इतना ही नहीं 2022 चुनाव के पहले जब क्रम से गुजरात, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बदले गए उसी क्रम में योगी को भी पलटने की कोशिश की गई जिसे योगी ने सतर्क रहते हुए बड़े सलीके से निष्फल कर दिया। अब एकबार फिर लोकसभा चुनाव में 63 की जगह 33 सीटे मिलने पर ठीकरा योगी के माथे फोड़ने का असफल प्रयास किया गया। लेकिन योगी ने सभी वरीशठों से प्रभावी ढंग से अपना पक्ष रखते हुए कहा कि जब टिकट वितरण दिल्ली की पसंद से होगा तो जीत-हार में मेरी भूमिका कैसे तय होगी। जहां जहां पार्टी ने बतौर स्टार प्रचारक निर्देश दिया वहाँ मैंने प्रचार किया। इससे गुजरात लाबी तिलमिला कर रह गई। अब उसने एक नया दाँव चला है। क्योंकि उसे इस बात का भान हो गया है कि योगी की लोकप्रियता प्रदेश ही नहीं समूचे देश में है। मोदी के बाद लोकप्रियता का ग्राफ उन्ही का ज्यादा है। ऐसे में सजिशकर्ताओं ने योगी के इस लोक[प्रिय चेहरे को धूमिल करने का कुचक्र रचना शुरू कर दिया है। इस समय हर उस सूबाई चेहरे कि तलाश हो रही है जो कभी योगी का करीबी रहा और आज किन्ही कारणवश उनसे असहज है। इनमें पहला प्रयोग केंद्र सरकार में पहले से वित्त राज्यमंत्री रहे पंकज चौधरी को दुबारा मंत्री बनाना साथ में बांसगांव के सांसद कमलेश पासवान को भी राज्यमंत्री बनाना। अचानक केशव प्रसाद मौर्य को दिल्ली बुलाकर मैराथन बैठक करना, मुख्यमंत्री की बैठक में दोनों उपमुख्यमंत्रियों का अनुपस्थित रहना, कभी मुख्यमंत्री बने योगी को अपने क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए अपनी विधानसभा छोड़ने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री फतहबहादुर सिंह, राज्यमंत्री दिनेश खटिक, चौरईचौरा से विधायक और निषाद पार्टी सुप्रीमो डॉ संजय निषाद का पुत्र सर्वं निषाद, पार्टी एमेलसी देवेन्द्र प्रताप सिंह, जैसे नेताओं द्वारा सरकार और मुख्यमंत्री योगी पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने का प्रयास दिल्ली के इशारे पर किया जा रहा है। क्योंकि सामान्य समझ रखने वाला भी इतनी सियासत जनता है कि प्रदेश का मंत्री अगर कही किसी वजह से अपने को असहज पा रहा है तो उसे अपने मुख्यमंत्री से शिकायत दर्ज करानी चाहिए। लेकिन अगर इसके लिए हर नेता गृहमंत्री अमित शाह का दरवाजा खटखटाया रहा है तो फिर सबकुछ खुली किताब की माफिक है। हर व्यक्ति को साफ-साफ नजर आ रहा है।

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