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काशी की देव दीपावली : देव पर्व पर 21 लाख दीयों से रौशन हुई काशी, अनूठा रहा लेजरशो

By Shakti Prakash Shrivastva on November 7, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव की आवाज में रिपोर्ट सुनने के लिए आडियो बटन पर क्लिक करें।

शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

जिस देश की संस्कृति के मूल में ही तमसो मा ज्योतिर्गमय यानि अंधकार से उजाले की ओर बढ़ने की रीति हो वहाँ प्रकाशोत्सव के लिए दीपावली के दिन का इंतजार नहीं होता। मनुष्य के जीवन की हर खुशहाली दिवाली मनाने की इजाजत देती है। यही वजह है कि मनुष्य के जीवन में प्रकाश का अलग महत्व है। हर साल कार्तिक माह की अमावस्या को मनाये जाने वाले प्रकाश पर्व दीपावली के ठीक 15 दिन बाद यानि कार्तिक की पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाया जाता है। दीपावली जहां नश्वर लोगों का त्योहार है वहीं देव दीपावली को देवताओं का पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवतागण पृथ्वी पर आकर यह त्योहार मनाते हैं। इसके मनाए जाने की धार्मिक मान्यता के साथ-साथ भगवान शिव के त्रिपुरारी कहे जाने की भी कथा जुड़ी हुई है। मान्यता की मुताबिक एक बार तीनों लोकों में त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने देवताओं का जीना दूभर कर रखा था। सभी देवगण एकसाथ इससे छुटकारा के लिए भगवान शिव के शरण में पहुंचे। कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर का बध कर देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई और सदैव के लिए त्रिपुरारी कहलाए। राक्षस से मुक्ति पा देवताओं ने स्वर्ग लोक मे दीये जला कर दीपावली मनाई। तभी से इस दिन यानि कार्तिक की पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाने लगी। इस वर्ष पूर्णिमा के दिन चन्द्र ग्रहण होने की वजह से देव दीपावली एक दिन पहले सोमवार को ही मनाई गयी। उत्तर प्रदेश में सबसे भव्य और दिव्य देव दीपावली काशी के गंगा के घाटों पर मनाई जाती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार देवोत्थानी एकादशी पर भगवान विष्णु चातुर्मास की निद्रा से जागते हैं और चतुर्दशी के दिन भगवान शिव। इसी खुशी में देवी-देवताओं ने काशी में आ घाटों पर दीये प्रज्वलित कर दिवाली मनाई थी। समय के साथ-साथ काशी की देव दीपावली न सिर्फ सांस्कृतिक बल्कि धार्मिक और पर्यटन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण होती चली गयी। देश ही नहीं दुनिया के कई देशो से पर्यटक अब इस दिन काशी पहुँचते हैं। इस बार देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी काशी आना था लेकिन अपरिहार्य कारणों से उनका आना नहीं हो सका। इस बार शंघाई सहयोग संगठन (एससीए) देशों से रूस के एक और किरगिस्तान के दो सदस्य काशी के देव दीपावली के अतिथि रहे। सोमवार की साँय गोधूलि की वेला के बाद जिस तरह 21 लाख दीयों और झालरों की रोशनी से गंगा किनारे के रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट और वरुना नदी के किनारे स्थित महल, भवन, मठ-आश्रम जगमगा रहे थे मानों काशी में पूरी आकाश गंगा ही उतर आई हो। 21 लाख दीयों में 10 लाख जिला प्रशासन और 11 लाख दीये काशीवासियों के सहयोग से लगाए गए थे। भव्य गंगा आरती के बीच लाखों-लाख दीयों का गंगा के पवित्र जल पर तैरता देखना अत्यंत मनोहारी था। सभी चौरासी घाटों पर जलते दीयों की रोशनी में जगमगाती छटा देखते ही बनती थी। शहर के चौराहों, सरकारी इमारतों और खंभों पर लगीं स्पाइरल एलईडी लाइटें माहौल में चार चाँद लगा रही थीं। ऐसा लग रहा था कि यह सिर्फ उत्सव ही नही बल्कि प्रकृति के साथ-साथ स्वयं को भी आलोकित करने का पर्व है। पहली बार शहर और ग्रामीण इलाकों के कुल 110 स्थानों पर देव दीपावली मनाई गयी। गंगा सेवा निधि की तरफ से आयोजित देव दीपावली महोत्सव अमर वीर शहीदों को समर्पित रहा। इस अवसर पर वीर योद्धाओं को भागीरथ शौर्य सम्मान से सम्मानित भी किया गया। काशी विश्वनाथ धाम को दस लाख टन फूलों से सजाया गया था। समूचे कार्यक्रम को शहरवासियों तक पहुंचाने के लिए प्रशासन द्वारा अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट, राजघाट, गोदौलिया मल्टी लेवल पार्किंग और वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन पर एलईडी स्क्रीन लगाई गयी थी। काशी की महान विभूतियों की तस्वीरें भी जगह-जगह लगाई गयी थीं। अनूठे लेजर शो ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस बार अयोध्या के दीपोत्सव की तरह काशी के देव दीपावली ने भी अमिट छाप छोड़ी है।

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