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सपा-कांग्रेस : एक बार फिर साथ-साथ !

By Shakti Prakash Shrivastva on July 10, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

राजनीति में कहा जाता है कि कुछ भी निश्चित नही है। राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है न दुश्मन, सब कुछ निर्भर करता है राजनीतिक नफा-नुकसान पर। 2017 का विधानसभा चुनाव साथ-साथ लड़ने वाली कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की राहें मन मुताबिक चुनाव परिणाम न होने से बाद में जुदा हो गईं थी। लेकिन इसे कहते हैं कालचक्र का घूमना, महज पाँच साल में दोनों दलों के सामने कुछ ऐसी राजनीतिक मजबूरियाँ खड़ी हो गईं जिसने इन दोनों को फिर से एक दूसरे के करीब आने को मजबूर कर दिया। हुआ ये कि पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, महान दल सरीखे कुछ छोटे-छोटे दलों के गठबंधन कर पूरे जोशो-खरोश के साथ पूरी दमदारी से चुनाव मैदान में उतरी। उसे इस बात का यकीन था कि सरकार की एंटी इनकमबेनसी, बीजेपी के अंदर का भीतरघात, राज्य कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली जैसे मुद्दे उसे सत्ता की दहलीज पार करा देंगे। लेकिन परिणाम आने पर ऐसा हुआ नहीं। लिहाजा मौका परस्त राजनीति के तहत हुए गठबंधन में समय के साथ-साथ दरारें आनी शुरू हो गई। समाजवादी पार्टी के पूर्व  प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव और सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने महज तीन महीने में ही गठबंधन से पलायन का संकेत देना शुरू कर दिया। समाजवादी पार्टी की इस सामयिक कमजोरी को भाँपते हुए प्रदेश में अपने को मजबूत करने की जुगत में लगी काँग्रेस को अवसर मिल गया और उसने सपा से नजदीकियाँ बढ़ाने के लिए हर संभव दांव चलने शुरू कर दिए। विधान परिषद में जब सपा से नेता प्रतिपक्ष का पद छिना तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया। राष्ट्रपति चुनाव में भी जहां शिवपाल और राजभर ने सपा को दुलत्ती मारी तो उस समय भी साथ रह कर कांग्रेस ने घाव पर मरहम लगाने का काम किया। राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के समर्थन में जब लखनऊ में सपा सुप्रीमो ने बैठक बुलाई तो उसमें न राजभर आए और न शिवपाल लेकिन कांग्रेस नेता और विधायक आराधना मिश्र मोना जरूर मौजूद रही। इस तरह की स्थितियों का विश्लेषण करने पर ऐसा लगता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में फिर एक बार कांग्रेस और समाजवादी पार्टी साथ हो चुनावी समर में उतर सकती है।

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