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June 16, 2025
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फिर ठगे गए चाचा शिवपाल !

By Shakti Prakash Shrivastva on August 18, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

              समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद उपजी परिस्थितियों में बेशक चाचा शिवपाल यादव ने भतीजे अखिलेश का संबल बनने की कोशिश की थी। लेकिन बाद के दिनों के हालात इस बात के अब चुगली करने लगे हैं कि चाचाशिवपाल और भतीजे अखिलेश यादव के बीच अभी भी कहीं न कहीं पहले जैसे विश्वास का अभाव है।

मुलायम सिंह यादव की मौत के बाद रिक्त हुई मैनपुरीलोकसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई तो मुलायम सिंह यादव की सियासी विरासत संभालने के लिए यादव कुनबे और समाजवादी पार्टी ने पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी और पूर्व लोकसभा सांसद डिम्पल यादव को अपना उम्मीदवार घोषित किया। डिम्पल ने ऐसे में परिवार के सियासी अभिभावक रहे रिश्ते में ससुर शिवपाल यादव से मुलाकात कर उनसे अपने विजय के लिए आशीर्वाद मांगा। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनी कि पूर्व में एक बार पार्टी के नजदीक आकर अखिलेश यादव के कार्यव्यवहार से नाराज हो कर दूरी बना चुके शिवपाल यादव ने न केवल डिम्पल को जीतने का आशीर्वाद दिया बल्कि फिर से पार्टी के साथ हो लिए। इतना ही नहीं अपनी सियासी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यानि प्रसपा का पूरी तरह सपा में विलय का ऐलान भी कर दिया। इस हालात पर सियासी जानकारों ने कयास लगाना शुरू कर दिया कि इस बार पहले जैसी स्थिति नही बनेगी। क्योंकि इस बार सियासत के अनुभवी खिलाड़ी शिवपाल यादव कोई ऐसी गलती नहीं करेंगे जिससे पूर्व वाले हालात उपस्थित हो सकें। मतलब वो निश्चित ही अपने और अपने बेटे आदित्य यादव समेत करीबी लोगों के सियासी भविष्य की गारंटी समाजवादी पार्टी में अवश्य कर लिए होंगे।

लेकिन जनवरी महीने में समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की जब घोषणा हुई तब पहली बार ऐसा एहसास हुआ कि शिवपाल यादव ने वापसी कर शायद कोई फिर से गलती तो नहीं कर दी। क्योंकि शिवपाल यादव को तो राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया लेकिन उनके बेटे आदित्य यादव को कहीं जगह नहीं दी गई। जबकि परिवार के अन्य सदस्यों में से धर्मेंद्र यादव, तेज प्रताप सिंह यादव और रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव आदि को जगह दी गई थी। सियासी गलियारों में इसकी खूब चर्चा हुई। शिवपाल-आदित्य को लगा कि शायद अगले राज्य कार्यकारिणी गठन आदि में यथोचित सम्मान मिल जाए। लेकिन पिछले दिनों जब भारी भरकम 182 सदस्यों वाली राज्य कार्यकारिणी की घोषणा पार्टी के उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने की तो उसमें भी आदित्य यादव का नाम गायब था। इस लंबी चौड़ी कार्यकारिणी में भी चाचा शिवपाल यादव के लोगों को कोई खास तवज्जो नहीं दी गई। पूरी कार्यकारिणी में शिवपाल के महज 5 करीबियों को ही जगह मिल पाई।

मिली जानकारी की मुताबिक इन 5 में से 3 को पार्टी का सचिव बनाया गया जबकि एक को आमंत्रित सदस्य और एक को विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया है। इतनी बड़ी सूची में शिवपाल के किसी नजदीकी को इस योग्य नहीं पाया गया कि उन्हे महासचिव या उपाध्यक्ष जैसा कोई पद दिया जाए। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा के वक्त भी शिवपाल समर्थकों ने पार्टी पर अपने लोगों की उपेक्षा का आरोप लगाया था। शिवपाल समर्थकों की नाराजगी के बावजूद पार्टी ने नई टीम में पिछड़ा वर्ग और एससी चेहरों पर खास ध्यान दिया। इनमे लगभग30 गैर-यादव ओबीसी और 10 एससी चेहरों को शामिल किया गया।टीम में 12 मुस्लिम, 5 ठाकुर और 2 ब्राह्मण चेहरों को शामिल किया गया है। ऐसा लग रहा है कि ऐसा कर पार्टी अपनी ‘यादवों की पार्टी’ वाली छवि से बाहर निकलना चाहती है। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बनाई गई इस लंबी चौड़ी टीम में अखिलेश की PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की अवधारणा भी मूर्त रूप पाते दिख रही है। क्योंकि नई कार्यकारिणी में इन समाज से आने वाले नेताओं को ज्यादा तरजीह दी गई है। इस टीम में 4 उपाध्यक्ष, 3 महासचिव, 61 सचिव और सदस्य बनाए गए हैं। राजकुमार मिश्रा को कोषाध्यक्ष नियुक्त किया है। सपा की राज्य कार्यकारिणी में पार्टी के नेता आजम खान के बेटे और पूर्व विधायक अब्दुल्ला आजम को भी जगह दी गई है। अब्दुल्ला आजम को सचिव बनाया गया है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी और भारी भरकम प्रदेश कार्यकारिणी में चाचा शिवपाल यादव के नजदीकियों को तवज्जो का न मिलना कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि शिवपाल और अखिलेश के बीच अभी तक वो नजदीकियाँ नहीं हो पाई हैं जिसकी खासकर शिवपाल यादव, उनके बेटे आदित्य यादव और उनके करीबियों को दरकार थी। इस तरह अब ऐसा लगता है कि चाचा शिवपाल एक बार फिर भतीजे अखिलेश यादव द्वारा ठगे गए।

 

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