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आखिरकार लोकसभा में पास हो गया महिला आरक्षण विधेयक

By Shakti Prakash Shrivastva on September 20, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                                 पिछले तीन दशकों में कई बार संसदीय पटल तक पहुँचने के बाद आखिरकार आज लोकसभा के विशेष सत्र के तीसरे दिन ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पास हो गया। लंबी चर्चा के बाद हुए मतदान में विधेयक के पक्ष में 454 मत मिले जबकि विरोध में दो मत पड़े। 18 सितंबर से शुरू हुए संसद के पाँच दिवसीय विशेष सत्र के दूसरे दिन कानूनमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे सदन पटल पर रखा था। लोकसभा में पास होने के बाद इस विधेयक को अब संसद के उच्च सदन राज्यसभा में पेश किया जाएगा। हालांकि इसके पहले भी इस विधेयक को पेश करने व पारित कराने के कई प्रयास हो चुके हैं। ऐसे प्रयास पिछले तीन दशकों में कई बार किये गए। संसद पटल पर जो विधेयक पेश किया गया है वो संविधान संशोधन विधेयक है। इस विधेयक को नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम दिया गया है। इसविधेयक में लोकसभा सहित राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए तैंतीस फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इनमें से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाने की मंशा है।

कांग्रेस की पी वी नरसिंह राव सरकार ने संविधान में 73वां और 74वां संशोधनके जरिये 1992 में पहली बार सत्ता के विकेंद्रीकरण करने का फैसला लिया था। ये दोनों ही संशोधन पारित भी हुए। इन्हें एक जून 1993 से राष्ट्रीय स्तर पर लागू भी कर दिया गया। इसी क्रम में अनुच्छेद 243 (डी) और 243 (टी) को संविधान में शामिल करते हुए देश में पंचायती राज और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित किया जाना सुनिश्चित किया गया। इसी के बाद 1996 में देश की संसद में पहली बार महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया। 1996 के बाद आज लगभग 27 साल के बाद ही सही आखिरकार संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का रास्ता साफ होने की कगार पर पहुँच गया है।

पहली बार संयुक्त मोर्चा की प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार ने 12 सितंबर 1996 को 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में इसे पेश कियाथा। लेकिन तब लोकसभा में पेश किए गए इस बिल पर सत्तारूढ़ पक्ष के दलों के बीचआपस में सहमति नहीं बन सकी थी। लालू प्रसादयादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव समेत कई नेताओं ने इसका विरोध कियाथा। विरोध की वजह से ही बिल को लोकसभा की तत्कालीन सदस्य गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को सौंप दिया गया।इस जेपीसी ने नौ दिसंबर 1996 को 11वीं लोकसभा में अपनी रिपोर्ट पेश की। बाद में इस विधेयक को 26 जून 1998 को अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 84वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में 12वीं लोकसभा में फिर से पेश किया। 1998 में तत्कालीन कानून मंत्री थंबी दुरै द्वारा जब यह विधेयक संसद में पेश किया जा रहा था उस समय संसद में भारी हंगामा हुआ था। कुछ सांसदों ने विरोध में विधेयक की प्रतियां भी फाड़ दी थीं। इसके बाद 2002 और 2003 में भी इस विधेयक को पारित कराने की कोशिश हुई लेकिन तब भी इसे पारित नहीं कराया जा सका।

2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने गठबंधन के न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत कहा कि यूपीए सरकार विधानसभाओं और लोकसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण के लिए कानून लाने का प्रयास करेगी। लेकिन वो भी सफल नहीं हो सकी। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में इस संविधान संशोधन को 108 वें विधेयक के रूप में 2008 में पेश किया गया जो 2010 को राज्यसभा में पारित भी हुआ। लेकिन लोकसभा में सपा, बसपा और आरजेडी जैसी पार्टियों के पुरजोर विरोध के चलते पारित होने से रह गया। लेकिन मौजूदा समय में स्थितियाँ पहले की तुलना में फर्क हैं। तब कांग्रेस के पास बहुमत नहीं था जबकि मौजूदा समय में  सत्ताधारी गठबंधन वाली बीजेपी सरकार के पास बहुमत है।  इसके अलावा कांग्रेस, बीआरएस और वामपंथी दल भी महिला आरक्षण के पक्षधर हैं।

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