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मिशन यूपी : गठबंधन की कांग्रेसी मुहिम को लगा ‘बसपाई करंट’

By on November 8, 2021 0 218 Views

शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

            उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी भी इस बार पूरे तेवर से उतरने की तैयारी में है। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी की अगुवाई में पार्टी अन्य दलों से भी गठबंधन कर अपनी स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत करना चाह रही है। इसके लिए बहुजन समाज पार्टी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ठीक-ठाक जनाधार वाली राष्ट्रीय लोकदल से काफी हद तक पार्टी को सहयोग मिलने की उम्मीद भी जगी थी। रालोद प्रमुख ने पिछले दिनों प्रियंका के साथ दिल्ली तक की यात्रा में फ्लाइट शेयर कर इस कयास को आधार भी दे दिया था लेकिन बसपा ने कांग्रेस के साथ आने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर इस गठबंधनी मुहिम को खासा तगड़ा करंट लगा दिया है।

प्रदेश में अपने से दूर हो चुके कैडर वोट को फिर से नजदीक लाने की कांग्रेस पार्टी की तरफ से लगातार कोशिशे की जा रही है। खासकर जबसे उत्तर प्रदेश में पार्टी का प्रभार प्रियंका गांधी ने संभाला है इस मुहिम मे तेजी आई है। लेकिन पार्टी को इस बात का बखूबी अंदाजा है कि कम से कम इस विधानसभा चुनाव में पार्टी अकेले दम पर पहले से बेहतर कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है लिहाजा पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख जयंत चौधरी और बसपा सुप्रीमो को अपने साथ ला कर प्रभाव बनाने की योजना बनाई। गठबंधन के बाबत जयंत चौधरी ने शुरू में तो कुछ रुचि दर्शाया लेकिन बसपा की तरफ से गठबंधन के प्रति दिखे अरुचि ने उन्हे पुनर्विचार करने को बाध्य कर दिया। क्योंकि उन्हे इस बात का यकीन था कि बसपा, कांग्रेस और रालोद की तिकड़ी होने पर ही कुछ बेहतर परिणाम की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि कांग्रेस की तरफ से जयंत को पंजाब में कुछ सीटें दिये जाने के साथ-साथ राज्यसभा भेजे जाने तक का आफ़र दिया गया। बसपा द्वारा गठबंधन में रुचि न दिखाये जाने के पीछे जानकारों का मानना है कि बसपा ने अपने पुराने अनुभवो से सीख लेते हुए और पंजाब के विधानसभा चुनाव की वजह से कांग्रेस से दूरी बनाने में ही अपनी भलाई समझी है। क्योंकि यूपी विधानसभा चुनाव के साथ ही पंजाब में भी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। वहाँ शिरोमणि अकाली दल के साथ बसपा का गठबंधन है। पिछले चुनाव में शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन बीजेपी के साथ था। कृषि क़ानूनों के चलते उपजे विवाद के बाद बीजेपी से अकाली दल की दूरी हो गयी और उसने बीजेपी से नाता तोड़ लिया था। कुल 117 सीटों में से 20 सीटें बसपा के हिस्से आई हैं। इन सभी सीटों पर बसपा का कांग्रेस से ही मुक़ाबला है। इसके अलावा भी कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिनकी वजह से बसपा ने अपनी दूरी बनाई हुई है। पंजाब में चरनजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर और लखीमपुर कांड में जिस तरह कांग्रेस ने दलित कार्ड खेला है उससे बसपा को उसके कैडर वोटों के खिसकने का खतरा है। सन 2019 में बसपा के विरोधी भीम आर्मी के मुखिया चन्द्रशेखर आज़ाद से प्रियंका गांधी की मुलाक़ात भी एक वजह है। यहाँ बसपा का मानना है कि यह मुलाक़ात अनायास ही नहीं बल्कि बसपा के खिलाफ एक सोची-समझी रणनीति के तहत हुआ है। इस तरह बसपा को लगता है कि चुनाव में कांग्रेस के साथ उसका गठबंधन फायदे की बजाय नुकसान का सौदा साबित हो सकता है लिहाजा उससे दूरी बनाए रखने में ही उसकी भलाई है।

 

 

 

 

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