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खतौली मैच : जीतने वाला मायूस क्यों ?

By Shakti Prakash Shrivastva on December 14, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव की आवाज में रिपोर्ट सुनने के लिए आडियो बटन पर क्लिक करें।

शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश में दो विधानसभा और एक लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के परिणाम ने जहां विपक्षियों खासकर समाजवादी पार्टी और उनके सहयोगियों को राजनीतिक संजीवनी देने का काम किया है वहीं सत्तारूढ़ बीजेपी के उत्साह पर पानी फेर दिया है। लेकिन ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खतौली सीट पर जीत दर्ज करने के बाद भी राष्ट्रीय लोकदल यानि रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी खुश नही हैं बल्कि मायूस हैं। मायूस होने के पीछे के उनके तर्क को पिछले दिनों उनके द्वारा किए गए ट्वीट से बखूबी समझा जा सकता है। उन्होंने अपने ट्वीट में यह जताया था कि खतौली और मैनपुरी में उनके गठबंधन को जिस तरह से सबका समर्थन मिला है उससे उन्हें बहुत खुशी हुई है। ये सर्वसमाज में समरसता के अच्छे संकेत हैं। लेकिन जिस तरह रामपुर में चुनाव प्रक्रिया के दौरान लोकतांत्रिक मूल्यों का गला घोंटा गया है उससे मैं आहत हूं। साथ ही आहत जयंत ने पार्टी के जीत का जश्न न मनाने संबंधी निर्णय से भी अवगत कराया।
उपचुनाव में गठबंधन की तरफ से खतौली विधानसभा सीट सपा की बजाय रालोद के हिस्से आई थी। यहाँ रालोद ने पूर्व विधायक मदन भैया को अपना प्रत्याशी बनाया था। चुनाव को मदन भैया ने लगभग बाईस हजार के अंतर से अपने निकटतम बीजेपी प्रत्याशी राजकुमार सैनी को परास्त कर जीत भी लिया। मतगणना के 27 वें यानि फाइनल राउंड में मदन भैया को 97071 मत मिले जबकि राजकुमारी को 74906 मत मिले। इस तरह से मदन भैया 22165 मतों से चुनाव जीत गए। जीत से उत्साहित पार्टी कार्यकर्ताओं का मानना है कि खतौली में सही मायने में भाईचारे की जीत हुई है। आम मतदाता बीजेपी के रवैये से दुखी है और इसीलिए विपक्षी गठबंधन के पक्ष में खड़ा हो गया है। यही नाराज मतदाता आने वाले समय में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव और इसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबक सिखाने का काम करेगी। खतौली में मिली जीत ने जहां पार्टी विधायकों की संख्या में इजाफा किया है वहीं पार्टी सुप्रीमो जयंत चौधरी का कद भी बढ़ा दिया है।
खतौली में जीत सुनिश्चित करने के लिए जयंत चौधरी ने जाट-मुस्लिम तक अपनी पार्टी को सीमित रखने के बजाय पश्चिमी यूपी में सियासी समीकरण को देखते हुए नया राजनीतिक प्रयोग किया। उन्होने सैनी समुदाय के प्रत्याशी की बजाय गुर्जर समुदाय के मजबूत नेता मदन भैया को उतारा और चंद्रशेखर आजाद के जरिए दलित समुदाय के वोटों का साधने का दांव चला। इसमें जयंत चौधरी न केवल कामयाब रहे बल्कि बीजेपी को अलग समीकरण का आईना दिखाते हुए निकाय चुनाव के बाबत एक संदेश भी दे गए।

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