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मैनपुरी उपचुनाव : इमोशनल जंग में बदली सियासी जंग

By Shakti Prakash Shrivastva on November 20, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

कहते हैं महान व्यक्ति वो है जिसके न रहने पर उसके महत्व का लोगों का अहसास हो। जी हाँ सियासत में ऐसी ही एक शख्सियत थे नेताजी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव। आज बेशक मुलायम सिंह सशरीर मौजूद नहीं हैं लेकिन उनकी अनुपस्थित में उनके परंपरागत लोकसभा सीट मैनपुरी में हो रहे उपचुनाव में हर तरफ उन्ही के नाम और प्रभाव की चर्चा है। उनकी अपनी पार्टी सपा हो या प्रतिपक्षी भाजपा दोनों ही खेमे में प्रचार बिना इनके नाम के नही हो रहा है। सपा प्रत्याशी और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव जहां अपने ससुर की विरासत सहेजने के लिए ससुर के नाम का इमोशनल कार्ड चल रही है तो प्रमुख प्रतिद्वंदी दल भाजपा के प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य भी अपने प्रचार के दौरान स्वयं को नेताजी का शिष्य बताना नहीं भूल रहे हैं। यहाँ सियासी प्रचार को देख कर के ऐसा लगता है कि यहाँ सियासी जंग पूरी तरह इमोशनल जंग में तब्दील हो गया है। अमूमन चुनावों में विकास, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, मंहगाई सरीखे मुद्दे महत्वपूर्ण होते हैं लेकिन यहाँ ये सभी मुद्दे पूरी तरह गौण नजर आ रहे हैं। यहाँ सिर्फ एक ही मुद्दा दिख रहा है वो है नेताजी मुलायम सिंह यादव और उनकी विरासत का।
हालांकि 10 अक्टूबर 2022 को मुलायम सिंह यादव के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट के लिए हो रहे उपचुनाव में मतदाता महज लगभग 16 महीने के लिए अपना सांसद चुनेंगे। क्योंकि मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल मई 2024 को समाप्त हो जाएगा। ऐसे में यहाँ का चुनाव मुलायम सिंह के सियासी विरासत के लिए रचे गए इमोशनल बैरिकेटिंग के इर्द-गिर्द ही होते नजर आ रही है। सपा प्रत्याशी डिम्पल यादव जब अपना नामांकन करने अपने पति और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ पहुंची तो उनके जुबान पर सिर्फ नेताजी का ही नाम था। अखिलेश भी लगातार नेताजी का ही नाम लेते  दिखे। सपा प्रत्याशी को चुनाव में सीधी टक्कर दे रहे भाजपा प्रत्याशी रघुराज सिंह शाक्य ने भी खुद को मुलायम सिंह यादव का शिष्य बताते हुए अपना नामांकन दाखिल किया।

सपा प्रत्याशी के पक्ष में मुलायम कुनबा की तीन-तीन पीढ़ियाँ जहां चुनाव प्रचार में दिन-रात एक किये हुए है। वही भाजपा ने भी मजबूत सपा प्रत्याशी के खिलाफ अपना ऐसा उम्मीदवार उतारा है जिसका सीधा संबंध नेताजी मुलायम सिंह यादव से रहा है। टिकट की औपचारिक घोषणा होने के बाद मैनपुरी पहुँचने पर भी रघुराज सिंह शाक्य ने भी अपने प्रचार की शुरुआत मुलायम सिंह से अपने रिश्ते का जिक्र करते हुए ही किया था। उन्होंने माना कि वे मुलायम सिंह के शिष्य हैं। यह भी कहा कि विरासत पर पुत्र का नहीं शिष्य का अधिकार होता है। इतना ही नहीं नामांकन करने से पूर्व वो सबसे पहले मुलायम सिंह के समाधि स्थल पर गए थे। इससे इतना तो साफ-साफ झलक रहा है कि सपा जहां सियासत की जमीन पर मुलायम सिंह को लेकर इमोशनल कार्ड खेल रही है तो भाजपा भी मुलायम को भुला नही रही है। अलबत्ता इस इमोशनल सियासी खेल में स्थानीय महत्वपूर्ण मुद्दे पूरी तरह गायब हो गए हैं। हर तरफ बात मुलायम, मुलायम और सिर्फ मुलायम की ही हो रही है।

इतिहास गवाह है कि अभी तक मैनपुरी लोकसभा सीट पर कभी भाजपा को कमल का फूल खिलाने का अवसर नहीं मिल सका है। लिहाजा मुलायम सिंह के नाम के इर्द-गिर्द हो रहे इस चुनाव में आक्रामक होने की बजाय भाजपा अखिलेश यादव द्वारा किये गए मुलायम और शिवपाल के अपमान का जिक्र कर के मुलायम परिवार को घेरने की कोशिश कर रही है। इस बाबत दिवंगत मुलायम सिंह यादव के समधी और पूर्व विधायक भाजपा नेता हरिओम यादव कहते हैं कि जिन लोगों ने नेताजी का अपमान किया और छल से पार्टी हथिया ली, उन्हें नेताजी की विरासत पर राजनीति करना शोभा नहीं देता। इस तरह की इमोशनल रस्सा-कस्सी में देखना है कि अंततः बाजी किसके हाथ लगता है। मुलायम सिंह के परिवार के हाथ या उनके शिष्य के हाथ।

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