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मराठी राजनीति के नए ‘चाणक्य’ ने क्यों त्यागा सीएम पद

By Shakti Prakash Shrivastva on June 30, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

महाराष्ट्र में नयी सरकार के गठन के साथ ही प्रदेश की राजनीति में ‘चाणक्य’ की भूमिका में रहने वाले कद्दावर मराठी मानुष और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार फिलहाल अब हाशिये पर आ गए हैं। उनकी जगह बीजेपी नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने ले ली है। क्योंकि राज्य में लगभग नौ दिनों तक चलने वाले पालिटिकल वेब सीरीज के नायक के तौर पर भले ही मीडिया की सुर्खियों में बागी शिवसेना विधायक एकनाथ शिंदे छाए रहे लेकिन पार्श्व में दिल्ली, सूरत, गुवाहाटी, गोवा और मुंबई के बीच सियासी ताना-बाना बुनने वाले असली शिल्पकार देवेन्द्र फड़नवीस ही रहे। अब यहाँ यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि अगर असली सूत्रधार देवेन्द्र थे तो फिर उन्होंने सरकारी सियासत में दो नंबर पर रहना क्यों स्वीकारा। राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि ऐसा करके फड़नवीस ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। फिर भी इसे समझने के लिए प्रदेश की पिछली सरकार के दौरान उपजे हालात को समझना जरूरी हो जाता है। जब एनसीपी के बागी कद्दावर नेता अजित पवार के समर्थन से 2019 में फड़नवीस की अगुवाई में राज्य में बीजेपी की सरकार बनी थी लेकिन चंद दिनों में ही अजित पवार के विश्वासघात से सरकार गँवानी पड़ी थी। फड़नवीस उस तरह की किसी भी स्थिति से इस बार बचना चाहते थे। ऐसा करके फड़नवीस ने शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे को उनके शब्दों में ही घेरने का भी काम किया है। एकनाथ शिंदे के बगावती घटनाक्रम के दौरान उद्धव ने कहा था कि यदि कोई शिवसैनिक मुख्यमंत्री बनता है तो पूरी शिवसेना उसका समर्थन करेगी। अब शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर फड़नवीस और पार्टी बीजेपी ने उद्धव ठाकरे के लिए मुसीबत पैदा कर दिया है। चूंकि शिंदे भी पुराने शिवसैनिक हैं और बगावत के दौरान भी अपनी अलग पार्टी बनाने की बजाय अपने को ही असली शिवसेना बताते रहे हैं। ऐसे में बीजेपी ऐसा कर उद्धव के साथ बचे शिवसेना विधायकों को भी अपने साथ लाने का प्रयास कर सकती है। पार्टी उद्धव को शिवसेना में ही अलग-थलग करने की भी हर संभव कोशिश करेगी। चूंकि बगावत के पूरे घटनाक्रम में शुरुआत से लेकर अंत तक बागियों का नेतृत्व एकनाथ शिंदे ने ही किया लिहाजा उन्हे आगे कर शिवसैनिकों में भरोसा जगाने का भी बीजेपी ने एक अवसर दिया है। इतना ही नहीं 2019 चुनाव के बाद शिवसेना ने दावा किया था कि बीजेपी ने ढाई साल के मुख्यमंत्री का वादा किया था। तब फड़नवीस ने कहा था कि ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ था और विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने भी उन्हें ही सीएम बनाने की बात की थी। लेकिन शिवसेना लगातार यह दावा करती रही कि सीएम पद के मोह की वजह से फड़नवीस अपने वादे से मुकर रहे हैं। ऐसे में इस बार फड़नवीस ने सीएम पद न लेकर शिवसेना को सीधे संदेश देने की भी कोशिश की है।

 

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