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घोसी में ‘दारा’ की हार के मायने !

By Shakti Prakash Shrivastva on September 9, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

              यूं तो देश में छः राज्यों के कुल सात विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए हैं लेकिन सर्वाधिक चर्चा में अगर कोई विधानसभा उपचुनाव था तो वो था उत्तर प्रदेश के मऊ जिला स्थित घोसी विधानसभा। यहाँ समाजवादी पार्टी के विधायक रहे दारा सिंह चौहान के इस्तीफा दिये जाने की वजह से उपचुनाव हुआ। वही दारा सिंह चौहान जो 2017 में प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार में वन्य एवं पर्यावरण विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे। पार्टी से असंतुष्ट होने पर 2022 के विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले ही बीजेपी छोड़ सपा का दामन थाम लिया था। सपा से चुनाव लड़ घोसी के विधायक भी बन गए थे। लेकिन बीजेपी के दुबारा सत्तारूढ़ होने पर उनका मोह सपा से भंग हो गया। उन्होने विधायकी से इस्तीफा दे दिया। उपचुनाव की घोषणा के बाद बीजेपी ने उन्हे फिर से अपना उम्मीदवार बना दिया। हालांकि दारा यह चुनाव अपने प्रतिद्वंदी और सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह से लगभग तैंतालीस हजार मतो से हार गए। इनके इस हार के मायने तलाशने के क्रम में जब चुनावी प्रक्रिया का विश्लेषण किया गया तो दिखा कि नामांकन के दिन से ही बड़े नेताओं-मंत्रियों के जमावड़े ने घोसी में यह अहसास करा दिया था कि बीजेपी के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न है। सरकार के उपमुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, विधायकों सहित सहयोगी दलों के प्रमुखों का जमावड़ा भी इस बात की तसदीक करता है। दारा सिंह के लिए भी यह चुनाव उनके सियासी भविष्य का टर्निंग प्वाइंट था। यहाँ से उनकी जीत उन्हे न केवल बीजेपी में वापसी का विश्वास जगाता बल्कि कैबेनेट मंत्री के रूप में तोहफा भी दिलाता।

2022 के विधानसभा चुनाव में बतौर सपा प्रत्याशी 1,08,430 मत प्राप्त कर दारा विधायक बने थे। लेकिन बीजेपी संगठन और सरकार का पूरा समर्थन पाने के बावजूद इस बार अपना पुराना प्रदर्शन दोहरा नहीं पाये। सियासी जानकारों की मुताबिक दारा का सियासी चरित्र मौका परस्ती वाला बन गया है। यह भी एक वजह है कि सियासी गुडा-गणित के चलते भले ही बीजेपी ने टिकट दे दिया था लेकिन जनता ने उनके इस चरित्र को सिरे से खारिज कर दिया। दारा सिंह चौहान अब तक दो बार राज्यसभा सांसद, एक बार लोकसभा सांसद और दो बार विधायक रह चुके हैं। दारा ने छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। शुरुआत में कांग्रेस संगठन के पदाधिकारी रहे।  फिर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। वर्ष 1996 में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने उन्हें राज्यसभा भेजा। 2000 में इन्होने राज्यसभा में दुबारा सपा का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद पलटी मारते हुए बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए। बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें घोसी लोकसभा सीट से 2009 में चुनाव लड़ाया और पहली बार दारा लोकसभा सदस्य बने। उन्हें बीएसपी ने लोकसभा में संसदीय दल का नेता भी बनाया। वर्ष 2014 में पुन: बीएसपी के टिकट पर लोकसभा के लिए मैदान में उतरे लेकिन बीजेपी प्रत्याशी हरिनारायण राजभर से  हार गए। अपने को सियासी विज्ञानी मानने वाले दारा देश में चल रहे सियासी तापमान को भांपते हुए 2015 में बीजेपी में शामिल हो गए।

बीजेपी ने उन्हे पिछड़ा वर्ग मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत कर दिया। 2017 के चुनाव में पार्टी ने मधुबन विधानसभा से टिकट भी दिया। 30 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज कर दारा प्रदेश सरकार में मंत्री बन गए। लेकिन मूल चरित्र से मजबूर दारा सपा में सियासी भविष्य देख 2022 विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी छोड़ सपा का दामन थाम लिया। बतौर सपा प्रत्याशी घोसी से विधायक बन गए। लेकिन सपा की सरकार न बनने पर प्रायश्चित करने के भाव के साथ वापस बीजेपी में आ गए। यहाँ बीजेपी ने भी उपचुनाव में इन्हे ही उम्मीदवार बना कर इन्हे इन्ही की कसौटी पर टाइट कर दिया। जनता ने भी इस बार अपने रुझान से यह एहसास करा दिया है कि एक तरफ तो बीजेपी चुनावी खर्च कम करने के लिए एक देश एक चुनाव की मांग कर रही है तो दूसरी ओर अपने स्वार्थवश जनता को उपचुनाव की दहलीज तक पहुंचाने वाले दारा सिंह चौहान को अपना उम्मीदवार बना कर जनता को बेवकूफ बनाना चाहती है तो जनता अब ऐसे बेवकूफ नहीं बनेगी।

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