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खुली आँख : बीजेपी ने अब पिछड़ों के साथ अगड़ों पर लगाया दाँव!

By Shakti Prakash Shrivastva on September 16, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                           उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी विधानसभा के लिए पिछले दिनों हुए उपचुनाव ने बीजेपी और एनडीए गठबंधन की आँखेँ खोल दी है। एनडीए गठबंधन खासकर बीजेपी को इस बात का सियासी भ्रम होने लगा था कि उसे सियासत के लिए पिछड़ों के लिए कुछ अलग रणनीति बनानी होगी। पिछड़े वर्ग से आए नेताओं को तवज्जो देते हुए उनके समाज में यह संदेश देना होगा कि यह पार्टी उनके व उनके हितों के साथ है। इस पर उन्होने अमल भी करना शुरू कर दिया। जबकि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत प्रांतीय नेतृत्व को इसमें बहुत यकीन नहीं था। क्योंकि वो पार्टी के मूलमंत्र सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के साथ प्रदेश में अगड़ा-पिछड़ा सबके लिए कार्य कर रही है। प्रदेश की जनता को सरकार के इस कार्य पर भरोसा भी है क्योंकि भरोसा न होता तो प्रदेश में इतिहास रचते हुए बीजेपी सरकार की दुबारा वापसी संभव नहीं था। ऐसे में जब घोसी के सिटिंग सपा विधायक दारा सिंह चौहान के इस्तीफे से रिक्त हुई विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव की घोषणा हुई तो पार्टी आलाकमान ने घोसी सीट से  इस्तीफा देने वाले नेता दारा सिंह चौहान को ही चुनाव में अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। उसे यह भरोसा था कि लगभग 40 हजार नोनिया चौहान बिरादरी का वोट और सपा गठबंधन छोड़ साथ आ चुके राजभर बिरादरी के अलंबरदारी का सदा जयघोष करते रहने वाले सुभासपा सुप्रीमो ओम प्रकाश राजभर की वजह से इतनी ही तादाद वाली राजभर-कोइरी आदि पिछडे वर्ग का वोट पार्टी के साथ आ जाएगा। इतने से ही पार्टी की जीत सुनिश्चित हो जाएगी। जबकि ऐसा हुआ नहीं। जब घोसी चुनाव का परिणाम आया तो बीजेपी आलाकमान का यह सपना चकनाचूर हो गया।

अब इस परिणाम से पार्टी आलाकमान अपनी नीतियों में संशोधन करते हुए पिछड़ों के साथ-साथ अब अगड़ों को भी खास तवज्जो देते हुए सियासत करने का निर्णय लिया है। इस परिवर्तित धारणा का पहला प्रयोग प्रदेश में पार्टी जिलाध्यक्षों की घोषित सूची में देखने को मिला। घोषित सूची में बीजेपी के 98 जिलाध्यक्षों में मात्र पांच दलित वर्ग से हैं। इनमें अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी 22 फीसदी से अधिक है। यहाँ तक की महिला आरक्षण को बढ़ावा देने संबंधी देशव्यापी चर्चा के बीच इस घोषित सूची में आधी आबादी को भी पांच प्रतिशत से कम प्रतिनिधित्व दिया गया है। कुल चार की संख्या में महिलाओं को जिले की ज़िम्मेदारी दी गई है। इनमें निवर्तमान जिलाध्यक्षों में तीन महिलाएं थीं। सूची की सबसे बड़ी खासियत ये है कि चुनाव से लगभग कुछ महीने पहले घोषित जिलाध्यक्षों की सूची में पार्टी ने पिछड़ों के साथ-साथ अगड़ों को भी तवज्जो दी है। पिछ़ड़ों को भी पूरा सम्मान देते हुए सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है।

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश की सभी 80 सीटें जीतने और 60 फीसदी वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए लगभग महीनों की कड़ी की मशक्कत के बाद पार्टी ने अपने जिलाध्यक्षों की नियुक्ति कर दी है। सियासी जानकारों का मानना है कि इस सूची पर घोसी चुनाव परिणाम का असर साफ-साफ दिख रहा है। इन्हीं 70 फीसदी नए चेहरों के साथ पार्टी ने प्रत्येक क्षेत्र में वोट बैंक व जातियों के सामाजिक समीकरण को देखकर प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है। इस सूची में पिछडे वर्ग से जहां 36 लोगों को जिले की कमान मिली है वहीं अगड़ी जातियों से 57 लोगों को प्रतिनिधित्व दिया गया है। इनमें 21 ब्राह्मण, 20 क्षत्रीय, 8 वैश्य, 5 कायस्थ और 3 भूमिहार जाति के जिलाध्यक्ष बनाए गए हैं। इसमें पार्टी ने अपने परंपरागत जाट, गुर्जर, कुर्मी, सैनी, मौर्य, शाक्य, कुशवाहा, लोधी और पाल समाज को पूरा मौका दिया है। पार्टी ने अपने परंपरागत अगड़े वोट बैंक पर भरोसा जताने के साथ पिछड़े वर्ग को पूरा सम्मान देने का काम किया है। पार्टी ने निषाद पार्टी और सुभासपा जैसी पार्टियों से गठबंधन रखते हुए भी राजभर और निषाद समाज से किसी को नुमाइंदगी का मौका नहीं दिया है। पार्टी ने कामकाज की समीक्षा करते हुए 29 जिलाध्यक्षों पर दुबारा भरोसा जताया है। सूची में संघ और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की रायशुमारी को भी महत्व दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क्षेत्र में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

 

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