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‘अघाडी’ को शिवसेना ने मारी पिछाड़ी

By Shakti Prakash Shrivastva on July 12, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

जून महीने तक महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महाराष्ट्र विकास अघाडी गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही शिवसेना ने राष्ट्रपति चुनाव में NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का ऐलान किया है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस तरह अघाडी गठबंधन को शिवसेना कीयह पहली पिछाड़ी है। परिस्थितिजन्य ही कहें लेकिन अभी अघाडी को इस तरह की कई और पिछाड़ी लगनी तय है। क्योंकि प्रदेश की मौजूदा राजनीतिक माहौल शिवसेना के लिए बहुत मुफीद नही है। सच माने तो 56 में से 41 विधायकों के एकनाथ शिंदे के साथ चले जाने से आज राजनीतिक अस्तित्व के संकट से जूझ रही शिवसेना न चाहते हुए भी कई निर्णय करने को बाध्य है। मुर्मू के समर्थन के मामले में ही शिवसेना मजबूर हो गई क्योंकि निर्णय के लिए बुलाई गयी सांसदों की बैठक में जब आठ की संख्या में सांसद उपस्थित नही हुए तो उद्धव ठाकरे विकल्पहीनता की स्थिति में एकनाथ शिंदे के समर्थन संबंधी घोषणा के बाद अपनी पार्टी का समर्थन करने को बाध्य हो गए। सूत्रों की मुताबिक बैठक में शिवसेना सांसद संजय राऊत समर्थन के पक्ष में नहीं थे लेकिन उद्धव के निर्णय पर उन्हे बैक होना पड़ा। हालांकि राजनीतिक संभावनाओं की तलाश में मनन कर रही पार्टी शिवसेना के सांसद संजय राउत ने अपने फेस सेविंग बयान में कहा कि राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का मतलब बीजेपी का समर्थन नहीं है। चूंकि मुर्मू का ताल्लुक आदिवासी समुदाय से हैं और महाराष्ट्र की करीब 10% आबादी आदिवासी है। इसलिए हमारा उनको समर्थन है। शिवसेना के इस कदम का राजनीतिक गलियारों में अलग-अलग तरीके से विश्लेषित किया जा रहा है। अधिकांश का मानना है कि शिवसेना का यह रवैया उसके लिए तो आत्मघाती साबित हो ही सकता है बल्कि महाराष्ट्र विकास अघाडी गठबंधन की ताबूत का कील भी साबित हो सकता है। हालांकि पार्टी की तरफ से राउत का अपने निर्णय के जस्टीफ़िकेशन में यह भी कहा गया कि पार्टी का इतिहास रहा है। पूर्व में प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी का समर्थन इसके प्रमाण हैं। रही बात किसी प्रकार के दबाव की तो शिवसेना किसी के दबाव में निर्णय नहीं लेती है। राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव 18 जुलाई को हो रहा है। देखना ये दिलचस्प होगा कि इसके बाद शिवसेना का स्टैंड उपराष्ट्रपति पद के लिए क्या रहता है।

 

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