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सपा-कांग्रेस रार का सच !

By Shakti Prakash Shrivastva on November 21, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                          हालिया सियासी घटनाक्रमों को देखने पर न मानने वाला भी यह मानने लग जाएगा कि सियासत में कुछ भी संभव है या सियासत का अपना कोई दीन-ईमान नहीं होता है। क्योंकि कुछ माह पहले बड़े जोशो-खरोश से बीजेपी और उसके गठबंधन को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए विपक्षी दलों ने आई एन डी आई ए नाम से एक गठबंधन बनाया। इस गठबंधन में शामिल अधिकांश दलों के आपसी सियासी दिल नहीं मिलने वाले थे लेकिन इसके बावजूद एक बड़े उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन सभी ने आपसी भेद-भाव मिटा साथ आने का निर्णय लिया। जैसे उत्तर प्रदेश में सपा के सामने कांग्रेस, बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सामने कांग्रेस और दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सामने कांग्रेस कई बार चुनावों में आमने-सामने रह चुके हैं लेकिन वो सब गठबंधन में साथ है। अभी गठबंधन की तीन ही बैठकें हो पाईं थी कि पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव की दुदुंभी बज गई। इन पांचों राज्यों के यही चुनाव अब गठबंधन की समूची एकता को छलावा साबित करने लगी है। जो दल बड़ी-बड़ी बातें और लक्ष्य का कल तक हवाला देते हुए विपक्षी एकता का दंभ भर रही थी वही अब एक-दूसरे के सामने आंखे तरेरे खड़ी है। इनमे सबसे बड़ा मामला उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को लेकर है। क्योंकि यह प्रदेश देश का इकलौता प्रदेश है जहां से देश के सर्वाधिक सांसद चुन कर जाते हैं। यहाँ की मजबूत सपा पार्टी को मध्य प्रदेश में चुनाव के दौरान कांग्रेस ने कोई तवज्जो नहीं दिया। शुरू में दोनों दलों में टिकटों के बंटवारे को लेकर सहमति बनी थी लेकिन बाद में सहमति का कोई मतलब नहीं रह गया। अलबत्ता दोनों दलों के बीच वो सबकुछ हुआ जो सियासत में अमूमन नहीं होता है।  सियासी गलियारे में पहले इन दलों के बीच रार की वजह इसे ही माना गया। लेकिन बाद में तस्वीर का दूसरा पहलू सामने आया तो पता चला कि वो तो कुछ और ही था।

वास्तव में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का ये मानना है कि देश में पिछड़ा वर्ग को समाज में और प्रतिनिधित्व  मिलना चाहिए। इसके लिए उन्होंने बाकायदा उन्ही दिनों पीडीपी की घोषणा की । उन्होंने तय किया कि अब उनकी पार्टी पीडीपी यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समाज को समाज के मुख्यधारा में लाने की कोशिश करेगी। इसी एजेंडे पर सपा ने अपनी सियासी समीकरण बिछाने शुरू कर दिए। इसी बीच कांग्रेस भी सियासत के इसी राह पर उतर गई। सपा को यह बात अखर गई।  फिर क्या था दोनों दलों के बीच टकराहट जैसे आसार समय-समय पर दिखने लगे। घोसी विधानसभा उपचुनाव में मिली सपा को  जीत के बाद कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने टिप्पणी की कि कांग्रेस गठबंधन धर्म का अनुपालन करती है जबकि सपा ने ऐसा नहीं किया। उनका आरोप था कि सपा की वजह से उत्तराखंड में हुए उपचुनाव की एक सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गई।  उसके बाद जब मध्य प्रदेश का चुनाव शुरू हुआ उसमें टिकट बंटवारे को लेकर दोनों ही दल एकदूसरे से खासे नाराज हो गए। एक मौके पर सपा सुप्रीमो अखिलेश ने यहाँ तक कह दिया कि जैसा सपा के साथ मध्य प्रदेश में कांग्रेस कर रही है वैसा ही कांग्रेस के साथ उत्तर प्रदेश में किया जाएगा।  सपा अपने परंपरागत यादवऔर पिछड़ा वोट बैंक को यह एहसास कराना चाहती है कि जातिगत गणना उसी का मुद्दा है। इसमें कांग्रेस को सेंधमारी का वो बिल्कुल कोई अवसर नहीं देना चाहती। इसलिए देखने में ऊपर से सपा-कांग्रेस के बीच छिड़े घमासान पर कोई भले ही टिकट बंटवारे आदि का आरोप लगाए लेकिन पीछे कि सच्चाई ये है कि उनके पिछड़े वोट बैंक को अपने-अपने पाले में साधने की लड़ाई है।

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