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आजादी के इतिहास में अहम है ‘चौरीचौरा’

By Shakti Prakash Shrivastva on August 15, 2021
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

सैकड़ों वर्षों तक चले देश की स्वतन्त्रता आंदोलन की जंग में पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित ‘चौरीचौरा’ कस्बे का एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान है। इसी स्थान पर हुए ‘कांड’ नही बल्कि ‘क्रान्ति’ ने पूरे देश में अलख जगाने का काम किया। भले ही स्वतन्त्रता आंदोलन की शुरुआत 1857 में मेरठ की क्रांति से हुआ था जिसके बाद 90 वर्ष लग गए थे देश को पूर्ण आजाद होने में। लेकिन यह भी यथार्थ है कि स्वतन्त्रता आंदोलन सरीखे हवन में आजादी प्राप्ति के लिए अंतिम आहुति देने का कार्य चौरीचौरा की घटना ने ही किया था। बाद में यह घटना आंदोलन की वह अभूतपूर्व घटना साबित हुई जिसने आजादी के समूचे परिदृश्य को ही बदल दिया। महात्मा गांधी ने इस घटना पर अफसोस जताते हुए कहा था कि ऐसा लगता है कि अभी हम देशवासी लड़ाई के लिए परिपक्व नहीं है। यह कहते हुए उन्होने अन्य सहयोगियों की राय को दरकिनार करते हुए असहयोग आंदोलन वापसी का निर्णय ले लिया। इससे असहयोग आंदोलन के स्थगन का कारण बनी यह घटना आजादी के इतिहास के टर्निंग प्वाइंट के रूप में दर्ज हो गया। स्वतन्त्रता आंदोलन के समूचे पृष्ठभूमि का यदि बारीकी से अध्ययन किया जाये तो मिलेगा कि समूचे आंदोलन के पार्श्व में परोक्ष-अपरोक्ष तौर पर किसानो की सहभागिता रही है। चौरीचौरा की घटना में भी किसानो ने ही स्वतन्त्रता के लिए क्रांति का मार्ग अपनाया। लेकिन यह महज दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम को इतिहास में जो स्थान मिलना चाहिए वो नहीं मिल सका। इसके तत्कालीन राजनीतिक कारण जो भी रहे हों। इस महत्वपूर्ण क्रांति को चौरीचौरा कांड नाम दिया गया जो उसके महत्व को देखते हुए कत्तई न्यायसंगत नहीं है। आजादी की लड़ाई में ब्रिटिश सत्ता को नेस्तनाबूद करने वाली इस इकलौती क्रांति को इतिहास में उसका वाजिब स्थान क्यों नहीं दिया गया इसका जवाब किसी के पास आज भी नही है। लेकिन अब वह समय आ गया है कि ऐसी क्रांतियों के महत्व को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर लाया जाये। सिर्फ चौरीचौरा ही नहीं ऐसे तमाम घटनाक्रमों और शामिल रहे गुमनाम शहीदों का पता लगाया जाये और उनको देश से रूबरों कराया जाए। बात सन 1922 की है जब पूरे देश में अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा चलाया जा रहा अहिंसा आंदोलन अपने चरम पर था। 4 फरवरी की तारीख थी और गांधीजी के इस आंदोलन में सहभागी इलाकाई सत्याग्रही चौरीचौरा के मुंडेरा बाजार से जुलूस निकाल रहे थे। इसी दौरान पुलिसिया लाठी चार्ज हुई और इससे आक्रोशित सत्याग्रहियों ने चौरीचौरा थाना परिसर पहुँच कर थाना भवन को आग के हवाले कर दिया। जिसमें 22 पुलिसकर्मी जलकर मर गए और 3 सत्याग्रहियों की भी पुलिस की गोली लगने से मौत हो गयी। इसके बाद सैकड़ों की संख्या में सत्याग्रहियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। मदन मोहन मालवीय सरीखे वकीलों की पैरवी के बावजूद 19 सत्याग्रहियों को चौरीचौरा मामले में फांसी दी गयी। इतिहास के पन्नों में इस घटना को चौरीचौरा कांड के नाम से दर्ज किया गया। इस घटना से गांधीजी इतने आहत हुए कि 12 फरवरी 1922 को बारदोली में आयोजित कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन वापसी का ऐलान कर दिया। आंदोलन भले वापस हो गया लेकिन इस घटना ने ब्रिटिश सरकार की चूलें हिलाने का महत्वपूर्ण काम किया। आंदोलन के बारे में अमरीकी लेखक लुई फिशर ने लिखा कि यह आंदोलन शांति की दृष्टि से नकारात्मक लेकिन प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक साबित हुआ है। आज समूचा देश इस क्रांति दिवस के 100 वें वर्ष में प्रवेश करने पर चौरीचौरा क्रांति का शताब्दी वर्ष मना रहा है।

 

 

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