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जनाधार न होने पर भी किसके लिए यूपी आयीं ममता

By Shakti Prakash Shrivastva on February 7, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

ह प्रश्न उठना लाजिमी है कि आखिर जब टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी का या उनके पार्टी का यूपी में जब कोई जनाधार नहीं है तो आखिर चुनावी मौसम में वो यहाँ किसके लिए आयीं। उनके उत्तर प्रदेश में इंट्री के सियासी निहितार्थ क्या हैं। लेकिन सियासत के बारे में ऐसा माना जाता है कि सियासी मौसम में सियासी गलियारे में कोई सियासी व्यक्ति नाहक चहल कदमी नही करता है। उसके हर एक कदम के अपने मायने होते है। यह अलग बात है कि उसे आमजन नहीं समझ पाता है। लेकिन सियासत के जानकार उसे भली-भांति जानते-पहचानते हैं। चूंकि ममता का यूपी आगमन सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के बुलावे पर हो रहा है इसलिए यह तय है कि इस दौरे में ममता हर वो संभव प्रयास करेंगी जिससे अखिलेश या उनकी समाजवादी गठबंधन को हो रहे विधानसभा चुनाव में फायदा पहुंचे। हालांकि ममता ने अपने ट्वीट में इस बात का खुलासा भी कर दिया है कि मैं चाहती हूँ कि यूपी चुनाव में सपा जीते। अपने दो दिवसीय यूपी भ्रमण कार्यक्रम में ममता न केवल सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के साथ साझा प्रेस कान्फ्रेंस करेंगी बल्कि सपा गठबंधन की वर्चुअल रैलियों को भी संबोधित करेंगी। इस दौरान वो बनारस भी जाएंगी। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के चुनाव में बंगाल के ममता माडल को आधार बनाकर अकेले दम पर भाजपा को पटखनी देना चाहते है। इस बाबत उन्होने बंगाल के खेला होबे जैसे नारे की तरह यूपी में खदेड़ा होगा का नारा दिया है। भाजपा के बड़े बड़े नेताओं के चुनावी दौरे का जवाब वो विपक्ष के शीर्ष नेताओं का दौरा कराकर देना चाहते है। जिस तरह बंगाल का चुनाव टीएमसी बनाम भाजपा हो गया था कमोबेश उसी तरह यूपी में अखिलेश चुनाव को भाजपा बनाम सपा करने में सफल होते दिख रहे हैं। बंगाली अस्मिता के सवाल पर बंगाल में बंगाल की बेटी बनाम बाहरी का नारा जोरों पर था उसी तरह सपा की तरफ से मोदी, शाह और योगी को भी बाहरी बताते हुए यूपी बचाने की बात की जा रही है। ममता की ही तर्ज पर अखिलेश ने भी जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने के लिए छोटे-छोटे दलों से गठबंधन किया है। यादव गढ़ बचाने के लिए दुश्मन बने चाचा शिवपाल को फिर साथ लाये है। जिस तरह पार्टी के सारे बड़े नेताओं के चुनाव के दौरान भाजपा में जाने की वजह से ममता ने ही पूरा चुनावी प्रबंधन किया था उसी तरह इस चुनाव में अखिलेश ने भी अकेले ही पूरी कमान संभाल रखी है। चाचा रामगोपाल यादव, शिवपाल, भाई धर्मेन्द्र आदि की सीमाए निर्धारित है। यह सच है कि यूपी में ममता या उनकी पार्टी का कोई जनाधार नहीं है लेकिन अकेले दम पर बंगाल चुनाव में भरी भरकम पार्टी भाजपा को चुनावी दंगल में धूल चटाने वाली ममता की मौजूदगी या समर्थन अखिलेश के मनोबल और ताकत दोनों को बढ़ाने में मददगार साबित होगा।

 

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