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ऐसे तो न हासिल होगी I.N.D.I.A. को सत्ता

By Shakti Prakash Shrivastva on September 6, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

           समाज में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव ने बहुत सारी स्थापित परिभाषाएं बदल दी है। लोग इससे कमोबेश जागरूक भी हुए है। इस जागरूकता का नतीजा और इसका दूसरा पहलू ये है कि अब जमीनी सच्चाई से इतर प्रचारित-प्रसारित सच्चाईयां अधिक महत्व रखने लगी है। देश की सियासत के संदर्भ में अगर इसे देखें तो लगेगा कि आज देश में बहुत सारी समस्याए मुंह बाये खड़ी है लेकिन उन समस्याओं की वजह से राजनीति पर कोई खास असर या दबाव नहीं पड रहा है। क्योंकि उन समस्याओं के सापेक्ष राष्ट्रवाद, चाँद पर पहुँचने सरीखे तकनीकी उपलब्धि, बहुसंख्यक हिडू आबादी की आस्था के प्रतीक राम मंदिर निर्माण, अंग्रेजी हुकूमत के साये से मुक्ति संबंधी सेन्ट्रलविस्ता जैसे प्रयास अधिक प्रासंगिक, अहम और परिणामपरक हो गए हैं। मौजूदा सरकारें इनका इस्तेमाल कर अपने को स्थापित किये हुए है। ऐसे में स्थापित बीजेपी शासित केंद्र सरकार को अपदस्थ करने के लिए नवगठित विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A.को भी कुछ ऐसा ही करना होगा। आज यह गठबंधन तीन बैठकें कर चुका है। सभी में यह तो ऐलान करता है कि इस बार बीजेपी जीत नहीं पाएगी लेकिन इस बात का फार्मूला नहीं दे पा रहा है कि ऐसा होगा कैसे। गठबंधन की पार्टियों को जल्द से जल्द इसकी काट ढूँढ़नी होगी।

विपक्षी गठबंधन की पटना में हुई पहली ही बैठक से गठबंधन के नेतृत्व यानि संयोजक बनाने और क्षेत्रीय स्तर पर सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा हुई जो अहम भी है लेकिन तीन बैठकों के बाद भी अभी वो हो नहीं पाया। इसमें नेतृत्व वाला मसला एक बार नजरअंदाज किया जा सकता है लेकिन जमीनी स्तर पर किये जाने वाले सीटों के समझौते को ज्यादा टाला नहीं जा सकता है। क्योंकि गठबंधन के भविष्य निर्धारण में उसकी भूमिका काफी अहम है। लेकिन मुंबई की बैठक में यह एहसास हुआ कि यह आसान भी नहीं है। हालांकि कहा गया कि ‘समझौता जितनी जल्दी संभव हो, किया जाएगा।’  लेकिन प्रश्न उठता है कि पश्चिम बंगाल में समझौता कैसे होगा, जहां वाम मोर्चे और कांग्रेस की लड़ाई तृणमूल से है? केरल में कैसे होगा, जहां वाम मोर्चे और कांग्रेस के बीच लड़ाई है? दिल्ली और पंजाब में कैसे हो सकेगा जहां आप ने कांग्रेस को विस्थापित कर दिया है? ऐसे में आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। पिछले लोकसभा चुनाव में 186 सीटों पर भाजपा से उसका सीधा मुकाबला था। सीटों का बंटवारा इतना जटिल क्यों हो गया है। इसे समझने के लिए यह जानना होगा कि राजनीति में पार्टियों को अपना अस्तित्व खो देने का डर बहुत ज्यादा होता है। देश की विपक्षी पार्टियां अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए I.N.D.I.A. के रूप में इकट्ठा हो रही हैं। उनका यह गठबंधन कहीं न कहीं राजनीति के अंकगणित के आधार पर बना है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीती थी और उसका वोट प्रतिशत 37.76 था। जबकि 142 सीटें जीतने का दावा करने वाले विपक्षी गठबंधन का कहना है कि बीजेपी को तब विपक्ष के बिखरे रहने का लाभ मिला था। इस गठबंधन की सोच यह है कि अगर भाजपा से लड़ने वाली पार्टियां एक विपक्ष के तौर पर एकजुट होकर लड़ें, तो उनका वोट शेयर भी बढ़ेगा और सीटें भी बढ़ेंगी।

यूँ तो विपक्षी एकता की बात सिद्धांतत: सही लगती है। लेकिन अगर बीजेपी को चुनाव में 50 फीसदी से अधिक वोट मिलते हैं, तो विपक्षी एकता का क्या होगा। यही संशय चुनावी मोर्चे पर I.N.D.I.A.  के सामने विकट चुनौती है। 2014 के चुनाव में बीजेपी ने जो 282 सीटें जीती थी, उनमें से 136 में उसे 50 फीसदी से अधिक वोट मिले थे। ऐसे ही, 2019 में बीजेपी ने 303 सीटें जीती, जिनमें से 224 सीटों पर उसे 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए ने उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन को बेअसर कर 80 में से 64  सीटें जीती थी, और इनमें से 50 सीटों पर उसे 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। यह सच्चाई विपक्षी नेताओं को भी स्वीकार करनी होगी कि मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी पिछले कुछ दशकों में देश की सबसे मजबूत पार्टी बनकर उभरी है। हालांकि क्षेत्रीय पार्टियों को परास्त करने और अनेक राज्यों में अपनी पैठ बनाने में बीजेपी को खासा मशक्कत करनी पड़ी थी। साठ के दशक में कहा जाता था कि दिल्ली से कलकत्ता जाते हुए कहीं भी कांग्रेस की सरकार के दर्शन नहीं होंगे। आज का विपक्ष इसे इस तरह से कह सकता है कि कोई तिरूवनंतपुरम से कोलकाता तक जाए, तो रास्ते में उसे बीजेपी की सरकार किसी राज्य में नहीं दिखेगी। इस समय I.N.D.I.A.  गठबंधन की सफलता के रास्ते की बड़ी चुनौती यह है कि वह मोदी को बाहर करने के नारे को वास्तविकता में कैसे बदले। गठबंधन के सदस्य मुखर होकर यह तो कह रहे हैं कि इस बार भाजपा जीत नहीं पाएगी। लेकिन वे यह नहीं कह रहे कि ऐसा होगा कैसे। मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, कृषि समस्या, जाति जनगणना, स्त्री सशक्तीकरण और आर्थिक विकास पर सिर्फ सवाल करना सही नहीं है। गठबंधन को इन मुद्दों पर ऐसा वैकल्पिक समाधान भी पेश करना होगा, जो मतदाताओं को आकर्षित कर सके। अगर I.N.D.I.A.  ऐसा नहीं कर सका तो उसकी सफलता पर संशय बना रहेगा।

 

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