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अब बढ़ेगा INDIA

By Shakti Prakash Shrivastva on July 22, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

                          एक समय था जब बीजेपी गठबंधन के खिलाफ विपक्षी दलों का देशव्यापी सबसे बड़ा गठबंधन था यूपीए। मतलब यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायन्स। कांग्रेस नेत्री सोनिया गांधी की अगुवाई वाले इस गठबंधन की नींव 2004 में पड़ी थी। तब इस गठबंधन में कुल चौदह पार्टियां शामिल थीं। लोकसभा चुनाव में जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए यानि नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस की हार हो गई थी। चुनाव परिणाम में तीन बड़े दल कांग्रेस को 145, बीजेपी को 138 और लेफ्ट पार्टियों को 43 सीटें मिली थी। ऐसी स्थिति में जब किसी के पास सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़े नही थे विपक्षी दलों ने बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए समर्थन देकर कांग्रेस की अगुवाई में सरकार बनाया। 22 मई 2004 को कांग्रेस के मनमोहन सिंह ने यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। मंत्रिपद की शपथ लेने वालों में संगठन के अन्य दलों के नेता मसलन एनसीपी प्रमुख पवार, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद, लोजपा अध्यक्ष राम विलास पासवान, झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन, टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव, डीएमके के टी आर बालू, दयानिधि मारन, ए राजा और पीएमके प्रमुख एस रामदास के बेटे अंबुमणि रामदास शामिल हुए। 2014 तक तो यह गठबंधन मजबूती से अस्तित्व में रहा लेकिन बाद के दिनों में इसका स्वरूप सिर्फ नाम तक ही रह गया। 2021 में तो तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था की क्या है यूपीए, कुछ नहीं है। उनके इस कथन के बाद से ही विपक्षी पार्टियों को एक नए संगठन की दरकार लगने लगी थी। बाद में बदली परिस्थितियों में एनडीए से अलग होने वाले बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने इस पर गंभीरता से प्रयास शुरू किया। उन्ही के प्रयास का प्रतिफल है कि 23 जून को पटना में पहली बार पंद्रह विपक्षी पार्टियों के शीर्ष नेताओं का जमावड़ा हुआ। इसके एक महीने के भीतर ही अठारह जुलाई को बेंगलुरु में हुए विपक्षी नेताओं की दूसरी बैठक में ही यूपीए की जगह इंडिया यानि इंडियन नेशनल ड़ेवेलपमेंटल इंक्लूसिव एलायन्स अस्तित्व में आ गया। इसमें देश के अलग-अलग राज्यों के कुल छब्बीस पार्टियों के नेताओं ने हिस्सा लिया। यूपीए की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस भी चाहती थी कि यूपीए  नाम से पिंड छूटे। क्योंकि मोदी समेत कई नेता वंशवाद और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यूपीए की खिल्ली उड़ाते रहते थे जो कांग्रेस को अच्छा नहीं लगता था लिहाजा उसने इससे पिंड छुड़ा लिया। कांग्रेस को ऐसा इसलिए भी रास आया क्योंकि यूपीए गठबंधन के अस्तित्व में आने के बाद 2014 आते-आते अधिकांश सदस्य रहे दलों से कांग्रेस के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रह गए थे। लेकिन 18 जुलाई को हुए गठबंधन की इस बैठक के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह कहना कि सारा फोकस, सारी पब्लिसिटी, सारा कैंपेन, सारे प्रोग्राम्स INDIA के बैनर तले होंगे। यदि कोई इसे चुनौती दे सकता है, तो देकर दिखाए। बहुत सारे सियासी संकेत देता है।

बीजेपी जैसी पार्टी, विपक्षी संगठन के इस नए नाम से जैसे बौखला गई। उस पर से ममता की ऐसी सीधी चुनौती। बीजेपी की बौखलाहट समझने के लिए बीजेपी शासित आसाम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा सरमा के 18 जुलाई की शाम को किए गए एक ट्वीट को गौर करिए। सायं लगभग सात बजकर सात मिनट पर किए गए ट्वीट में उन्होंने लिखा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत के लिए लड़ाई लड़ी और हम भारत के लिए ही काम करते रहेंगे। नीचे की ओर लिखा था कि बीजेपी फार भारत जबकि यहाँ पहले लिखा होता था बीजेपी फार इंडिया जो कि बीजेपी का आफ़िशियल ट्वीटर एकाउंट है। हालांकि ऊपर उनका परिचय चीफ मिनिस्टर आफ आसाम, इंडिया लिखा था। इस पोस्ट के वायरल होते ही जब लोगों ने ट्रोल करना शुरू किया तो उन्होंने उसे दुरुस्त करते हुए दूसरा ट्वीट किया जिसमें चीफ मिनिस्टर आफ आसाम, भारत हो गया। जबकि उसी ट्वीट में परिचय के नीचे लिखे गुवाहाटी, इंडिया लिखा रह गया। ऐसे में यह बात समझ से परे है कि गठबंधन के नाम का शार्ट फार्म इंडिया होने से बीजेपी को इतनी बौखलाहट क्यों हो गई। और हेमंता विस्वा, सांसद डॉ निशिकांत दुबे सरीखे न जाने कितने भाजपाई नेता ऊल-जलूल टिप्पणी करने लगे। जबकि विरोध विरोध के पैमाने पर किया जाना चाहिए। यह तो एतराज समझ में आता है कि कोई कहे कि गठबंधन का शार्ट नाम इंडिया नहीं होना चाहिए। इसको लेकर कोर्ट सहित बहुत सारे मंचों पर विरोध जताया जा सकता है लेकिन इंडिया नाम जो हमारे देश का नाम है उसको लेकर ऐसी बौखलाहट कहीं से जायज नहीं लगती। क्या हेमंता जैसे लोग प्रेसीडेंट आफ इंडिया, प्राइम मिनिस्टर आफ इंडिया, कान्स्टीट्यूशन आफ इंडिया, रिजर्व बैंक आफ इंडिया, इलेक्शन कमीशन आफ इंडिया जैसे अनगिनत संस्थानों का नाम बदल देंगे। इतना ही नहीं सरकार की स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, खेलों इंडिया, पढे इंडिया, बढ़े इंडिया जैसे अनेकानेक योजनाओं का नाम भी बदल दिया जाएगा। कतई नहीं। ऐसा कही से उचित नहीं है। क्योंकि विरोध संगठन, पार्टी उसके नेता का होना तो जायज है लेकिन अब इंडिया के साथ ऐसा होना कत्तई राजनीति में शोभा नहीं देता है। क्योंकि यह हमारे देश का नाम है और हमें इसे खारिज करने की बिसवा जैसों को चेष्टा नहीं करनी चाहिए। असल में बौखलाहट की वजह ये है कि राष्ट्रवाद और प्रखर राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीटने वाली बीजेपी को विपक्षियों ने इंडिया नाम देकर शुरुआती सियासी बढ़त बना ली है। अब देखना ये है कि इंडिया नाम के मुद्दे पर कोर्ट में पहुँचने वाले मामलों पर कोर्ट क्या फैसला सुनाती है। लेकिन ये तो तय है कि इस नाम से बीजेपी के सियासी तोते उड़ते नजर आ रहे हैं और गठबंधन का इंडिया बढ़त बनाते नजर आ रहा है।

 

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