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कयासों से इतर ‘धनखड़’ बने NDA के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार, मोदी ने साधे कई समीकरण

By Shakti Prakash Shrivastva on July 16, 2022
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

NDA यानि राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन। इसके सबसे बडे  घटक दल बीजेपी ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की तरह ही उपराष्ट्रपति पद के लिए भी एक ऐसे चेहरे को उम्मीदवार बनाया जिसका कयासों में भी नाम नही था। सूत्रों और कयासों को आधार बनाए तो सबसे अधिक मजबूत दावेदारी इस पद के लिए मुख्तार अब्बास नकवी की बन रही थी। नकवी को जब राज्यसभा के लिए उम्मीदवार नही बनाया गया तो इस बात को बल मिलने लगा कि इन्हे उम्मीदवार बना पार्टी अल्पसंख्यक समीकरण साधेगी। लेकिन इस तरह के अप्रत्याशित निर्णयों के लिए सर्वमान्य होते जा रहे मोदी-शाह-नड़ड़ा तिकड़ी ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की भांति ही पश्चिम बंगाल के तेजतर्रार राज्यपाल जगदीप धनखड़ का नाम घोषित कर सभी को एक बार फिर चौंका दिया। धनखड़ के जरिए पार्टी ने एक बड़ा सियासी दांव चला है जिसके दूरगामी परिणाम मिलेंगे। सबसे पहले तो धनखड़ को पश्चिम बंगाल में ममता दीदी को अपेक्षाकृत नकेल लगाने का पारितोषिक मिला। धनखड़ जुलाई 2019 में बंगाल के राज्यपाल बने थे। इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस कदर दबाव में रखा कि मुख्यमंत्री ने इनको ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया। इनके बीच  रिश्तों में इतनी कटुता आ गई थी कि राज्य सरकार यह विधेयक ले आई कि राज्य के विश्वविद्यालयों का चांसलर, राज्यपाल नहीं बल्कि मुख्यमंत्री रहेगा। इसके बाद किसान आंदोलनों से किसी तरह पार पायी बीजेपी ने धनखड़ के जरिए वहा भी न केवल किसान समीकरण साधे बल्कि जाट इकवेशन भी सुधारने की उम्मीद जागा दी। चूंकि धनखड़ राजस्थान के रहने वाले किसान हैं और जाट समुदाय से आते हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा ने जब इनकी उम्मीदवारी का ऐलान किया तो भी इन्हे किसान पुत्र कह कर संबोधित किया जो इस समीकरण को मजबूती देता है। मुखर व्यक्तित्व के धनी धनखड़ चौधरी देवीलाल के करीबी रहे हैं। वे वीपी सिंह के दौर में जनता दल में थे। खास बात यह है कि वे भाजपा या आरएसएस की मूल विचारधारा से नहीं आते, बल्कि किसान राजनीति से आते हैं। वे संवैधानिक पदों पर रहकर चुप रहने वाले नेता नहीं, बल्कि अहम मुद्दों पर अपनी टिप्पणी देने वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं। इन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। 18 मई 1951 में जन्में धनखड़ राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के प्रेसीडेंट भी रहे। इनकी राजनीतिक यात्रा जनता दल से शुरू हुई। राजस्थान के झुंझनु से 1989 में सांसद बने। वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकार में मंत्री रहे। कांग्रेस की सदस्यता ले 1993 में अजमेर के किशनगढ़ से विधायक बने। 2003 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा तबसे बीजेपी में है। 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बने। अब देखना दिलचस्प होगा कि अनेकानेक राजनीतिक समीकरणों को बखूबी साधने वाली बीजेपी को 2024 वाली चुनावी वैतरणी पार करने में इनमें किसका कितना सहयोग मिलता है।

 

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