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‘राजभर’ के लिए कोई मायने नहीं !

By Shakti Prakash Shrivastva on November 26, 2023
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शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव

वैसे भी सियासत के बारे में कहा जाता है कि सियासत का कोई अपना चरित्र नहीं होता है। स्थान, काल और पात्र इसके लिए खासा महत्व रखते हैं। इस क्षेत्र में नेता अपना सभी निर्णय इन्ही के आधार पर अमूमन लेते है। उनके लिए जमीर, स्वाभिमान समेत चाल-चरित्र और चेहरे का कोई खास महत्व नहीं होता है। उत्तर प्रदेश की सियासत में ऐसे ही एक विशेषज्ञ नेता है जिनका नाम है ओम प्रकाश राजभर। इनकी पार्टी का नाम सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी है। राजभर का अतीत इस बात का गवाह है की उनके लिए सियासत में मर्यादा का कोई मायने नहीं है।

ओम प्रकाश राजभर को समझने के लिए बहुत अधिक नहीं महज पिछले दो विधानसभा के कार्यकाल का विश्लेषण करना काफी है। 2017 में जब उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी और गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया तो उनकी सरकार में गठबंधन सहयोगी के तौर पर सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर को भी कैबिनेट मंत्री बनाया गया। शुरुआती वर्षों में तो सबकुछ ठीक रहा लेकिन बाद में राजभर के बडबोलेपन के चलते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आँखों में ये खटकने लगे। एक समय ऐसा भी आया कि इन्हे मंत्रिमंडल से अलग होना पड़ा। गठबंधन से अलग होते ही राजभर ने समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव का दामन थाम लिया और वो सपा के साथ गठबंधन कर लिए। 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान इनकी पार्टी सुभासपा सपा के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरी। आधा दर्जन से अधिक विधायक इनकी पार्टी से जीतकर आए। चुनाव प्रचार के दौरान राजभर ने बीजेपी के अन्य नेताओं की तुलना में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को निशाने पर रखा। योगी आदित्यनाथ के लिए हर वो कुछ कहा जो नही कहना चाहिए। यहाँ तक कहा कि बाबा जहां से आए उन्हे वही पहुंचाऊंगा। बाबा जाएँ मंदिर में पूजा करें। लेकिन अपनी आदत से मजबूर राजभर कुछ दिनों बाद ही अखिलेश यादव की भी खिलाफत करने लगे।

राष्ट्रपति के चुनाव में गठबंधन की मर्यादा के विपरीत इन्होने एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया। मतलब योगी आदित्यनाथ के पाले में खड़े हो गए। मऊ जिले के घोसी विधानसभा के लिए होने वाले उप चुनाव के ठीक पहले वो फिर से एनडीए खेमे के हिस्सा हो गए। जो बात कल तक योगी आदित्यनाथ के लिए कहा करते थे राजभर वही अब अखिलेश यादव के लिए कहने लगे। घोसी चुनाव में उन्हे जीत की उम्मीद थी और यह यकीन था कि सीट जीतने के बाद उन्हे सरकार में शामिल कर लिया जाएगा। लेकिन दुर्भाग्यवश इनके साथी और बीजेपी उम्मीदवार दारा सिंह चौहान चुनाव हार गए। ऐसे में इनके मंत्री बनने का सपना अटक गया। लेकिन परिस्थितियाँ बदलीं और बीजेपी हाइकमान ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए राजभर से बात की। गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड़ड़ा से दिल्ली मुलाक़ात के बाद राजभर ने फिर मीडिया में मंत्री बनने की तारीख बताने जैसे राग अलापने लगे। लेकिन जब वो भी समय बीत गया तो उन्होने आदतन दबाव बनाने के लिहाज से मीडिया में कहा कि मुझसे अन्य दल भी मुलाक़ात कर रहे है। यह मुझे तय करना है कि मैं कहाँ रहूँ। इसी दौरान अपने पार्टी के विधायक और माफिया डान मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को लेकर किरकिरी झेल रहे राजभर अपनी पार्टी से माफिया डान ब्रजेश सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ाने तक की बात करने लगे। थोड़े दिन और बीते क्या कुछ हुआ किसी को नहीं मालूम लेकिन ओम प्रकाश राजभर के अचानक स्वर बदल गए। चंद रोज पहले तक दबाव की भाषा बोलने वाले राजभर शनिवार को यह कहने लगे कि लोकसभा चुनाव में वो गठबंधन के साथी के रूप में ही चुनाव लड़ेंगे। यहाँ तक कह रहे है कि मंत्री पद मेरे लिए मायने नहीं रखता। राजभर के बारे में दी गई सभी जानकारियां मीडिया फोरम पर मौजूद हैं। ऐसा नहीं कि इसे किसी शोधोपरांत लिखा गया है। ऐसे में राजभर को पूरा सियासी चरित्र समझा जा सकता है।

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